आत्मसम्मान
आत्मसम्मान
"सुनो विनय, मुझे तलाक चाहिए।" शुभी ने स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कह दी।
एक बारगी तो विनय को लगा मानो किसी ने सौ वाल्ट का करेंट लगा दिया हो उसके शरीर में। शुभी से इस तरह की प्रतिक्रिया की कल्पना उसने कभी नहीं की थी। करता भी कैसे?? जिस समाज में स्त्री को विवाह के बाद पति को परमेश्वर रूप में पूजने की बात कही जाती हो, वहाँ स्त्री द्वारा तलाक माँगना आज भी अधिकांश घरों में अपराध और गैर क़ानूनी माना जाता है। कभी परिवार और कभी बच्चों की दुहाई देकर मरे हुए रिश्तों की निभाने की बात कही जाती है। सब समझौते केवल स्त्री के लिए होते हैं। ऐसे समाज का हिस्सा शुभी तलाक की बात कैसे कर सकती थी?? विनय का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
"सीधे सीधे क्यों नहीं कहती कि किसी और के साथ है तुम्हारा नाजायज रिश्ता। वरना इस वैवाहिक रिश्ते को तुम यूँ खत्म करने की बात कभी नहीं कहती।"
"विनय, तुम कभी समझ ही नहीं पाए नारी मन को। अगर किसी से प्रेम होता तो अब तक नहीं रूकती तुम्हारे साथ। कबका चली गयी होती। "
पत्नी जीवन में आत्मसम्मान भी चाहती है। पर जहाँ तुम्हारा परिवार में सम्मान नहीं वहाँ भला पत्नी के रूप में मेरा सम्मान कैसे हो सकता है??
"ससुर जी द्वारा तुम्हें उल्टी-सीधी बातें कहना, इस उम्र में भी तुम्हें मारना, सासु माँ द्वारा मुझे तुम्हारे किये गए कार्यों को लेकर ताने मारना ये सब अब सहन नहीं होता। "
"अगर मेरा वर्तमान ऐसे गुजर रहा है तो होने वाली संतान के भविष्य की कल्पना मात्र से सिहर उठती हूँ। "शुभी ने अपना भय निःसंकोच व्यक्त किया।
"अरे पिता हैं वो मेरे और एकमात्र संतान हूँ उनकी। उनके मरने के बाद ये सब मेरा ही तो होगा ना। फिर तो तुम राज करोगी राज। "विनय ने शुभी को समझाने की कोशिश की।
"विनय, पिता के मरने से पहले मुझे अपनी नजरों में कितनी बार मरना होगा?? बता सकते हो जरा। जिस प्रकार शरीर को सीधा रखने के लिए रीढ़ की हड्डी महत्वपूर्ण होती है, उसके बिना खड़े होने का सामर्थ्य नहीं रहता ठीक उसी प्रकार आत्मसम्मान इंसानी जीवन की रीढ़ की हड्डी के समान होती है। पर पैसों की लालच में तुम ये बात भूल चुके हो, मैं नहीं। "शुभी ने स्पष्ट कहा।
"पागल हो तुम, क्यों मरना होगा तुम्हें??? और ये क्या रीढ़ की हड्डी की रट लगाए बैठी हो तुम??
"सही कहा तुमने, पागल हूँ मैं विनय। पर आत्मसम्मान खोकर अगर दुनिया भर की संपत्ति भी मिल जाए तो उसका क्या फायदा?? इंसान के जीवन में उसका आत्मसम्मान सबसे ज्यादा कीमती होता है और तुम उसे ही खत्म करने की सलाह दे रहे हो। नहीं मुझसे संभव नहीं होगा यह सब।" शुभी अपने निर्णय पर डटी रही।
"अच्छा तो तुम्हें लगता है कि मुझसे तलाक लेकर तुम आत्मसम्मान से जी पाओगी। अरे मायके वाले खुद तुम्हें दो-चार महीने बाद मेरे पास पटककर जायेंगे। तब देखूँगा तुम्हारी अकड़। "विनय ने राक्षसी हँसी हँसते हुए कहा।
"तुम फिर गलत सोच रहे हो विनय। मैं अपने मायके नहीं जाऊँगी। जानती हूं खूब अच्छी तरह जानती हूँ की विवाह के बाद विवाहित बेटी को मायके में वह सम्मान नहीं मिलता जो विवाह पूर्व मिला करता था। और वापसी का तो प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि जब रिश्तों में टूटन और कड़वाहट आ जाती है तो दोबारा रिश्ता जोड़ने पर उस सड़े-गले रिश्ते की बदबू से स्त्री की आत्मा मर जाती है। वह जिंदा लाश बन जाती है। और मैं मरकर जीना नहीं चाहती हूँ बल्कि अपने अस्तित्व को बचाये संघर्ष करके जीना चाहती हूँ। "
अपनी एक सहेली के पास चली जाऊँगी और वही रहकर जॉब करके अपना जीवन गुजारूँगी। ऐसे समय अपनों से ज्यादा पराये अपनों से भी ज्यादा साथ देते हैं, सँभालते हैं। तुम खुश रहना अपनी बिना आत्मसम्मान भरी ज़िंदगी में।
तुमसे कोई शिकायत नहीं मुझे। जो निर्णय किया है अब उसका जो भी परिणाम हो मुझे स्वीकार होगा।
अलविदा....
इतना कहकर शुभी अपना सामान लेकर घर से चली गयी और विनय घर के खुले दरवाजों को खाली निगाहों से देखता रह गया।
आज पहली बार वह अपने आप को अधिक झुका हुआ महसूस कर रहा था मानो किसी ने रीढ़ की हड्डी सरका दी हो।