अच्छा बेटा
अच्छा बेटा
"बेटा, हो सके तो आज बाजार से करेला ले आना। बहुत दिनों से करेले की सब्जी खाने का मन कर रहा है।" बाजार जाते हुए बेटे से बूढ़ी माँ ने बेहद करुण स्वर में कहा। बहू ने सुना तो तुरंत कह दिया, "माँ जी, जो सबके लिए बनता है, वहीं आपके लिए भी बनाती हूँ। अब करेले की सब्जी कोई नहीं खाता। केवल एक आदमी के लिए सब्जी बनाना मेरे लिए संभव नहीं होगा।"
"तो मैं ही बना लूँगी बहू। बस बेटा ले आए।" बूढ़ी सास ने डरते-डरते कहा। "आपको अंदाजा भी है कि मुझे तेल,गै स आदि कितना सँभालकर चलाना पड़ता है। फिर पिछले महीने ही तो आपने करेले की सब्जी खायी थी। हर महीने बार-बार बच्चों की तरह क्यों जिद्द करते हैं आप?"
माँ चुप हो गयी और बेटा सिर झुकाए बाहर निकल गया। जानता था कुछ कहेगा तो घर में लड़ाई शुरू हो जाएगी जो आखिर में आकर माँ पर ही समाप्त होगी।
बाजार में उसने देखा कि एक छोटा लड़का अपनी माँ से किसी खिलौने के लिए जिद्द कर रहा था। माँ पहले तो उसे बहलाती रही और फिर हारकर उसे उसका मनपसंद खिलौना लेकर दे दिया। बच्चा खुश हो गया और उसे खुश देखकर माँ भी।
सहसा उसे अपने बचपन की बातें याद आ गयी। जब वह भी इसी तरह जिद्द किया करता था और माँ भी पिताजी से छुपकर इसी तरह उसकी हर जिद्द पूरा कर दिया करती थी।
आज वह माँ की एक छोटी ख्वाहिश पूरी नहीं कर पा रहा था। अब उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा।
जानता था पत्नी को कहकर कोई फायदा नहीं होगा। अगले दिन पत्नी मायके जाने वाली थीं और वह उसे छोड़ने चला गया। माँ ने उन्हें जाते देखा पर चुप ही रही।
लौटते समय सुरेश अपने एक मित्र के घर से एक टिफिन ले आया, जिसमें करेले की सब्जी थी। माँ जैसे ही भोजन करने बैठी, वैसे ही बेटे ने टिफ़िन खोलकर माँ के सामने रख दिया। करेले की सब्जी देख माँ की आँखों में आँसू आ गए। "अरे बेटा, तुझे याद थी कल की बात?"
"हाँ माँ! बचपन में तू मेरी हर ख्वाहिश पूरी किया करती थी। अब मेरी बारी है। समझने में देर हो गयी। हो सके तो मुझे माफ़ कर दे माँ।" बेटा माँ का हाथ थामे रोने लगा।
बूढ़ी माँ भी रोते हुए बेटे को गले लगा कहने लगी, "मेरा अच्छा बेटा।"