Priyanka Mudgil

Action Crime Inspirational

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Priyanka Mudgil

Action Crime Inspirational

आत्मसम्मान से समझौता नहीं

आत्मसम्मान से समझौता नहीं

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पता नहीं, यह सपना था या कोई भ्रम..... अभी थोड़ी देर पहले ही रुचि की आंख लगी थी।उसे महसूस हुआ कि जैसे खिड़की से कोई झांक रहा है। वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और दरवाजा खोलकर बाहर देखने लगी। लेकिन उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया।तभी उसके पति विवेक की आंख खुली।

विवेक ने पूछा," क्या हुआ... रुचि! कोई परेशानी है क्या...?""

"पता नहीं विवेक! मुझे ऐसा लगा जैसे कोई नजर मुझे घूर रही है।" अरे, ऐसा कुछ नहीं है। शांति से सो जाओ.... जरूर तुमने कोई सपना देखा होगा.."

" हां हो सकता है "रुचि ने कहालेकिन अब उसकी आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। बार-बार उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि क्या यह भ्रम है...? और अगर भ्रम है तो उसे बार-बार ऐसा क्यों महसूस होता है....? कुछ तो है जो वह या तो देख नहीं पा रही है या फिर समझ नहीं पा रही है। खैर, जैसे -तैसे उसे नींद आई।

सुबह अलार्म कि आवाज से ही उसकी तंद्रा भंग हुई। जल्दी से उठ कर अपनी 6 वर्षीय बेटी को उठाया और उसे स्कूल के लिए तैयार करने लगी। फटाफट से नाश्ता लगाकर विवेक को आवाज लगाई।विवेक के ऑफिस और बेटी रूही के स्कूल जाने के बाद, उसने फटाफट से अपने सास - ससुर का नाश्ता लगा दिया।सासू मां ने पूछा," बहू! तुमने अजय की पसंद के अनुसार पोहा बनाया है कि नहीं...?"

अजय रुचि की सासू मां का दूर का रिश्तेदार था और रिश्ते में रुचि का देवर लगता था। ऑफिस के किसी काम की वजह से अजय इंदौर आया हुआ था और ऑफिस के गेस्ट हाउस में ही ठहर गया था। तभी विवेक और उसके माता-पिता ने उसे अपने घर पर ठहरने के लिए कहा ।सासू मां ने कहा," अजय बेटा! वैसे भी तुम कहां रोज-रोज यहां हमसे मिलने आते हो, यह घर भी तुम्हारा अपना ही है और हमारे होते हुए तुम्हें किसी गेस्ट हाउस में रहने की जरूरत ही क्या है...?"

फिर विवेक ने भी बड़े भाई की तरह अजय को हुकुम दिया कि वह आकर उनके साथ उनके घर में ही रहे। अजय और विवेक की बचपन से ही खूब पटती थी। जब भी मिलते थे दोनों खूब धमाचौकड़ी करते थे।।टेबल पर नाश्ता लगने के बाद सासु मां ने अजय को आवाज लगाई," अजय बेटा! जल्दी आओ वरना नाश्ता ठंडा हो जाएगा"" हां हां बुआ जी!बस अभी आता हूं"

रुचि सबको नाश्ता कराने लगी। तभी अजय ने रुचि का हाथ पकड़ कर कहा,"भाभी!आप भी आइए ना.... आप भी हमारे साथ बैठ कर नाश्ता कीजिए.."

रुचि को अजय का यूं हाथ पकड़ना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसे अंदर ही अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था। लेकिन सासू मां इन सब बातों को बहुत साधारण तरीके से ले रही थी।उन्हें लग रहा था कि अजय का मजाकिया स्वभाव है ही और अगर देवर अपनी भाभी से मजाक मस्ती ना करें तो और किससे करेगा।खैर, रुचि ने कहा,"नहीं भैया आप तीनों बैठकर नाश्ता कीजिए मैं गरम-गरम पराठे बना कर लाती हूं। मैं बाद में खा लूंगी ""तभी अजय ने हंसते हुए कहा, "रुचि भाभी! माना कि विवेक भैया मुझसे उम्र में तीन साल बड़े हैं लेकिन आप तो मेरी हम उम्र है ना.... तो आप मुझे अजय कह कर ही बुलाइए मुझे अच्छा लगेगा.."

रुचि इस बात पर फीकी सी मुस्कान देकर रसोई घर में चली गई। पर पता नहीं क्यों, उसे अजय को देखकर कुछ अच्छा नहीं लगता था। रसोई घर से भी उसने महसूस किया कि जैसे नाश्ता करते - करते अजय की नजरें उसे ही घूर रही है। जैसे ही उसने अजय की तरफ देखा ,तो उसने नजरे फेर ली और सब से बातें करने में मस्त हो गया।अजय को घर में रहते हुए चार -पांच दिन से ज्यादा हो गए थे। अब वह रुचि को बात - बात पर छेड़ने लगा। रुचि को ना चाहते हुए भी उससे बात करनी पड़ती थी। लेकिन फिर भी वह कोई ना कोई बहाना बनाकर चली जाती थी। फिर धीरे-धीरे अजय रुचि का मजाक मजाक में कभी हाथ पकड़ लेता तो कभी गाल खींच लेता। रुचि को बहुत गुस्सा आता, लेकिन वह सासू मां का रिश्तेदार है और अगर वह उसे कुछ भी कहेगी तो सासु मां कहीं नाराज ना हो जाए....यह सोचकर वह चुप ही रही।तभी एक दिन दोपहर के समय सब लोग सोए हुए थे। रुचि भी थक कर रूही के पास जाकर सो गई।लेकिन फिर उसे महसूस हुआ जैसे किसी ने उसे छुआ हो। वह हड़बड़ा कर उठी।

तो उसने देखा अजय सामने ही खड़ा मुस्कुरा रहा था ।अब ये सब रुचि की बर्दास्त से बाहर हो गया।

उसने गुस्से से चिल्ला कर कहा," अजय भैया ! यह क्या बदतमीजी है...? मैं अब तक सब कुछ बर्दाश्त कर रही थी कि सासू मां को कहीं बुरा ना लगे और आप हमारे मेहमान हैं। लेकिन आपकी इस हरकत के लिए मैं आपको माफ नहीं कर सकती हूं.."और फिर रुचि ने अजय का हाथ पकड़ कर उसे अपने कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर लिया। रुचि की चिल्लाने की आवाज सुनकर उसकी सासू मां भी वहां आ गई ।"क्या बात है बहू..? इतना शोर क्यों मचा रखा है कुछ हुआ है क्या..?"तभी अजय ने कहा,"कुछ नहीं बुआ जी! मैं तो बस भाभी से थोड़ा सा मजाक मस्ती कर रहा था तो उन्हें अच्छा नहीं लगा और वह मेरे ऊपर चिल्लाने लगी। शायद भाभी को मजाक करने वाले लोग पसंद नहीं है या फिर यूं कहूं कि मेरा यहां रहना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है... तो मैं चला जाता हूं ..." अजय ने भावुक होने का नाटक करते हुए कहातभी रुचि जोर से बोली," नहीं मां जी! जो ये कह रहे हैं ऐसा कुछ भी नहीं है । आपको अच्छे से पता है कि घर में कोई भी मेहमान आता है तो मैं उसकी अच्छे से आवभगत करती हूं। लेकिन जब से अजय घर में आया है मुझे अजीब सी घुटन महसूस होती है। बार-बार ऐसा लगता है जैसे कोई मुझे घूर रहा है । जब भी सोती हूं तो लगता है कोई नजरें गड़ाए मुझे ही देख रहा है। पहले तो मुझे लगा कि मैंने कोई सपना देखा है या फिर यह मेरा भ्रम होगा लेकिन नहीं ऐसा कुछ भी नहीं था यह सब कुछ हकीकत था""भाभी ! आप यह कैसी बातें कर रही है..? मैं तो आपको अपनी मां के समान समझता हूं और आप मेरे ऊपर इतना घटिया इल्जाम लगा रही है" अजय

ने जोर देकर कहातभी वहां पर विवेक भी आ गया। उसे भी सबकी बातें समझ में आने लगी।

तभी रुचि ने कहा," विवेक! मैंने उस दिन आपसे कहा था ना कि कोई तो है जिसकी नजर मेरे ऊपर टिकी हुई है..... तब आपने कहा था कि यह मेरा भ्रम है...""कुछ मत कहो रुचि! मैंने सब कुछ सुन लिया है"

विवेक भी कुछ दिन से नोटिस कर रहा था कि जब तब अजय बात बात पर रुचि को छूने की कोशिश करता था या मजाक मजाक में उसके करीब जाने की कोशिश कर रहा था। उसने एक दो बार बातों-बातों में अजय को समझाया भी ......लेकिन अजय को किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ा और विवेक ने भी रुचि की बात का समर्थन किया।और अजय को घर से निकल जाने के कहा।

यह सब देख कर सासू मां का मुंह फूल गया।

तभी रुचि ने हाथ जोड़कर सासू मां से कहा," मां जी! मुझे माफ कर दीजिए। मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूं, लेकिन बात जब मेरे आत्मसम्मान पर आएगी तो मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी.... मैं आपके घर की इज्जत हूं और मेरे मान सम्मान और इज्जत की रक्षा करने की जिम्मेवारी आपकी भी बनती हैं। अब आप ही फैसला करें कि कौन सही है और कौन गलत..?""

फिर सासू मां चुपचाप वहां से चली गई। अजय मन ही मन खुश हो रहा था। उसे लग रहा था कि उसकी बुआ जी उसे बहुत प्यार करती हैं और चाहे कुछ भी हो जाए, कोई भी सास अपने रिश्तेदारों या बेटों के सामने बहुओं की बात कहां मानती हैं....

तभी कुछ देर बाद सासू मां आई और अजय को उसका बैग पकड़ा कर कहा,"अजय! तुम इस घर से जा सकते हो और फिर कभी मुझे अपना चेहरा मत दिखाना.... रुचि मेरे घर की बहू, मेरी इज्जत है.... किसी भी औरत के लिए उसका आत्मसम्मान उसका गहना होता है तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहू की तरफ गलत नजर उठाने की .....आइंदा से मुझे अपना गंदा चेहरा मत दिखाना.."

फिर अजय चुपचाप बुआ जी के हाथ से अपना बैग लेकर चला गया। क्योंकि अब उसके पास कोई और चारा भी नहीं था।

वहीं दूसरी ओर रुचि हैरान थी अपनी सासू मां के इस फैसले से.. वो सासु मां, जिन्होंने उसका कभी साथ नहीं दिया। जो बात - बात पर उसे ताने मारती रहती थी। उन्होंने उसका पक्ष लिया, यह सोच कर वो बहुत खुश थी।

फिर उसने कहा,"मां जी! मुझे माफ कर दीजिए। मेरी वजह से घर का माहौल खराब हो गया.."

" नहीं रुचि बेटा! घर का माहौल तुम्हारी वजह से नहीं किसी की गंदी नियत और गंदी सोच की वजह से खराब हुआ है । चाहे कुछ भी हो लेकिन हूं तो मैं भी एक औरत ही ना.... और अगर एक औरत , दूसरी औरत के आत्मसम्मान के लिए कदम नहीं उठाएगी तो और कौन उठाएगा..?"

अपनी सासु मां की यह बात सुनकर रुचि के मन में उनके लिए और इज्जत बढ़ गई और वह आगे बढ़कर अपनी सासू मां के गले से लग गई ।

"बहुत-बहुत शुक्रिया,मां जी! मेरा साथ देने के लिए.... मुझे समझने के लिए ....सही कहा आपने.... मैं अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता कभी नहीं करूंगी..."" रुचि ने कहा।

दोस्तों कई बार ऐसा होता है कि हमारे आसपास कुछ गंदी संकुचित सोच वाले लोग आ जाते हैं और वो ऐसी गंदी हरकत कर देते हैं जो हमारी सहनशक्ति से बाहर हो जाती है लेकिन बात जहां हमारी इज्जत और आत्मसम्मान की आती हैं, वहां पर हमें चुप नहीं रहना चाहिए। फिर सामने चाहे हमारा कोई भी कितना भी करीबी क्यों ना हो...। क्योंकि वह कहावत है ना कि 'इज्जत औरत का सबसे बड़ा गहना होती है ' और उस पर उंगली उठाने का हक किसी को भी नहीं है।


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