आत्मरक्षा(अपने स्वाभिमान की)
आत्मरक्षा(अपने स्वाभिमान की)


हिम्मत तो देखो इस लड़की की.......
उस मनचले लड़के के चेहरे पर सरेआम थप्पड़ जड़ दिया। सचमुच आज के दौर में ऐसी ही निडर लड़की की जरूरत है। पड़ोसी गुप्ता साहब के मुंह से अपनी बेटी की तारीफ सुनकर सिमी के पिता सतीश मन ही मन फक्र महसूस कर रहे थे।
घर आते ही सतीश ने अपनी बेटी से कहा "सिमी तू ठीक है बेटा? आज बाहर जो हुआ वो मुझे गुप्ता साहब ने बताया। तूने मुझे फोन क्यों नहीं किया? खैर जो भी हो तूने बहुत अच्छा किया और मुझे तुझ पर फक्र है। इधर सिमी की मां बार बार पूछ रहीं थी कि हुआ क्या है?
सिमी ने सारी बात बताई कि.......
मां पिछले कई दिनों से दो बदमाश लड़के बाहर बस स्टैंड पर मुझ पर और दूसरी लड़कियों पर अभद्र कमेंट कर रहे थे। बहुत गुस्सा आता था जब आस-पास खड़े लोग इस बात का विरोध नहीं करते थे। और आज तो हद हो गई मां, उन लड़कों ने एक लड़की के साथ बदतमीजी करने की कोशिश की और हमारा रास्ता भी रोका। और इसी वजह से मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उसे जोर से थप्पड़ मार दिया।
सिमी की मां चिंतावश उसे डांटने लगी,
मैंने दस बार कहा है कि पापा को साथ ले जा। भले ही बस स्टैंड घर से पास हो पर तु जानती है ना की वहां माहौल कैसा होत
ा है, इतना कुछ होने के बाद भी तूने मुझे या तेरे पापा को एक फोन करना भी जरूरी नहीं समझा? अब कल तू अकेली नहीं जाएगी। मैं आऊंगी तेरे साथ।
कब तक मां? कब तक मुझे अपने आंचल से बांध कर रखोगी? मुझे हर परिस्थिति का सामना करना सीखना होगा। अपने अंदर डर बिठाकर मैं किसी भी विषम परिस्थिति का सामना नहीं कर पाऊंगी। जानती हो मां आज मेरे इस कदम से बाकी लड़कियों में भी हिम्मत आई। किसी ना किसी को तो शुरुआत करनी होगी ना।
अब नहीं, बहुत हो गया डर डर कर जीने का खेल। अब तो सामना भी करेंगे और जरूरत पड़ी तो अपना स्वाभिमान बचाने के लिए लड़ भी जाएंगे।
इतने में सिमी की सहेली और उसकी माताजी घर आईं उन्होंने सिमी की तारीफ की और अपनी बेटी को भी सिमी की तरह निडर होकर परिस्थितियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया।
सिमी के पिता सतीश ने अपनी पत्नी को समझाया कि
तुम अभी परेशान हो इसलिए। शांति से सोचना तुम्हें हमारी बेटी पर गर्व महसूस होगा जैसे मुझे हो रहा है।
बस अब और नहीं, अब डर को छोड़ना होगा और हमें स्वयं का रक्षक बनना होगा।
सिमी की यह बात पूर्णतया सत्य है और एक नई शुरुआत का संकेत है।