वेदना
वेदना
बेटा तु ठीक तो है?भारती और रुद्र कैसे हैं ? अपना ध्यान रखना और हमारी चिंता बिल्कुल मत करना,हम दोनो ठीक हैं। रोज़ फोन करना। रात-दिन तुम लोगों की चिंता लगी रहती है। हम सभी बहुत दुर है ना एक दूसरे से। चलो अब हम फोन रखते हैं। इशिता से भी फोन पर बात कर लें। अपने बच्चों से बात करने के बाद मिस्टर और मिसेज शुक्ला रो पड़े। अकेले जो हैं।
एक संपन्न परिवार। दोनों अभी कुछ समय पहले एक बहुत अच्छे पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। किसी तरह की कोई कमी नहीं। बेटा और बहू अमेरिका में डाक्टर हैं। बेटी और दामाद न्यूयॉर्क में सेटल हैं। पोता है और एक नातिन भी है। घर पर उनका ध्यान रखने और सारा काम करने के लिए बाई (maid) है। समय-समय पर चेक-अप के लिए फेमली डाक्टर आ जाते हैं। समयानुसार राशन, दवाइयां,फल और सब्जियां आ जाती हैं। हर एक काम और वस्तु सही वक्त पर। यहां तक कि दोनों इतने संतुष्ट थे कि उन्हें देख कर लग रहा था कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। कुछ दिनों में बेटे और बहू के पास जाने वाले थे। उस समय वे लोग संतुष्ट दिखाई पड़ रहे थे। लेकिन अब? आज की स्थिति?
अभी कुछ दिनों से मैं उन्हें देख रही हूं प्रतीत होता है कि उनके जितना अकेला शायद ही कोई हो। उन्हें रोते देखा तो.... ।उनकी वेदना देख कर मन अशांत सा हो गया। आज ये स्थिती है कि दोनों बिल्कुल अकेले हैं। घर का काम तो दोनों मिलकर कर लेते हैं पर उनकी तकलीफ़ का क्या? वो मजबूर दिखाई दे रहे हैं। ना वो कहीं जा सकते हैं ना किसी को बुला सकते हैं। बस पुरा परिवार एक दूसरे को विडियो काल पर देखकर थोड़ा संतुष्ट हो जाता है। पर बस थोड़ा संतुष्ट खुश नहीं।
सचमुच जो इस संकट में अपने परिवार के साथ हैं खुशनसीब हैं। क्योंकि वे अपने परिवार के इर्द गिर्द है,उनका साथ महसूस कर रहे हैं। साथ हस खेल रहे हैं साथ बैठकर खा रहे हैं। वरना मिस्टर और मिसेज शुक्ला जैसे बहुत से परिवार है जो खाना तो क्या एक दूसरे को देखने को भी तरस रहे हैं। विषम परिस्थितियों में अगर परिवार साथ ना हो तो जीवन फिका सा लगता है।
आज हम उनकी वेदना को देख सकते हैं, समझ भी सकते हैं। पर शायद सभी महसूस नहीं कर सकते। बस अब यही प्रार्थना है कि यह कोरोना का संंकट जल्द से जल्द खत्म हो और एक बार फिर लोग अपने परिवारों से मिल सकें।