आत्मनिर्भर होने मे क्या बुराई
आत्मनिर्भर होने मे क्या बुराई
" अरुण शाम को जल्दी आ जाना मुझे बाजार जाना है!" रीतिका ने अपने पति अरुण से कहा.
" रीतिका यार तुम ऑटो या कैब से चली जाना...!"अरुण ने कहा.
"अरुण ऑटो या कैब मे बच्चों के साथ दिक्कत आती बच्चों को संभालू या सामान को!" रीतिका बोली.
" यार इसीलिए तो तुम्हे कबसे बोल रहा कार चलाना सीख लो सेल्फ डिपेंडेंट बनो मैं हर दूसरे- चौथे दिन ऑफिस से जल्दी नही आ सकता .. तुम जानती हो बॉस की गुड लिस्ट मे आना वैसे ही कितना मुश्किल उस पर रोज 1-2 घण्टे जल्दी आऊंगा तो कैसे पर्मोशन मिलेगी!"
" अच्छा बस आज के लिए फिर नही कहूंगी पक्का!" रीतिका बोली.
" ठीक है देखता हूँ..!"
ये है अरुण और रीतिका अरुण एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है रीतिका हाउस वाइफ.. दोनो की शादी को 12 साल हो गए.. दोनो के दो बच्चे है बेटी शीना 10 साल और बेटा चिराग 6 साल.. अरुण कबसे रीतिका से कार चलाना सीखने को बोल रहा पर उसका कहना है मैं कार सीख गई तो तुम्हारा साथ कैसे मिलेगा कहीं जाने मे जबकि अरुण का कहना कार आ जाए तो रीतिका छोटे मोटे काम को अरुण पर डिपेंड ना रहे..
" मम्मी जल्दी आओ देखो चिराग सीढ़ियों से गिर गया.. दोपहर मे काम से फ्री हो रीतिका आराम कर रही थी के अचानक शीना की आवाज़ आई.
" कैसे.. उफ्फ् इतना खून क्या करूँ मैं...ये तो बेहोश हो गया...शीना तू पापा को फोन कर.जल्दी... .!" रीतिका घबराहट मे चिराग को उठा बोली.
" मम्मी पापा का फोन बन्द आ रहा!" शीना बोली.
" हे भगवान अब मैं क्या करूँ बाहर मेन रोड तक कैसे जाऊँ.. !" रीतिका रोने लगी.
किसी तरह चिराग को गोद मे उठा शीना से घर का ताला लगवा वो ऑटो की तलाश मे निकली खून बहे जा रहा था.. गर्मी की दोपहर मे कोई पड़ोसी भी नज़र नही आ रहा था.....
किसी तरह हाँफती हुई वो रोड तक आई पर वहाँ ऑटो नही कोई..
तभी अचानक उसकी पड़ोसन शालिनी वहाँ से कार से जा रही थी रीतिका को देख रुकी.
" अरे रीतिका ये क्या हुआ... चलो पहले गाड़ी मे बैठो बाते बाद मे हॉस्पिटल चलो जल्दी.!" शालिनी बोली.
" थैंक गॉड शालिनी तुम मिल गई.. कोई ऑटो नही मिल रहा था चिराग सीढ़ियों से गिर गया और ग्रिल लग गई उसके.. अरुण का फोन भी नही लग रहा था! " रीतिका रोते हुए बोली.
हॉस्पिटल पहुँच चिराग का इलाज शुरू हो गया..
" रीतिका तुम्हारे तो गाड़ी खड़ी रहती अरुण जी को लेने तो ऑफिस की गाड़ी आती तो तुम गाड़ी क्यों नही सीखी!" शालिनी अचानक बोली
" अरुण ने कितनी बार बोला मैं ही टाल जाती थी के फिर अरुण कहीं नही जायेंगे मेरे साथ!" रीतिका बोली.
"बच्चे के पेरेंट्स कौन हैं??" अचानक नर्स आ बोली.
" जी मैं माँ हूँ उसकी!" रीतिका बोली
" डॉक्टर बुला रहे आपको!"
" देखिये मेम खून बहुत बह गया वो तो अच्छा हुआ फिर भी वक़्त से आ गई आप वर्ना बच्चे को बचाना मुश्किल हो जाता खैर अब खतरे की बात नही ओपरेशन करके टाँके लगा दिये है थोड़ी देर में होश आ जायेगा.. आज यहाँ रखेंगे हो सकता कल घर भेज दें !" डॉक्टर ने कहा.
" शुक्रिया डॉक्टर!" रीतिका बोली.
" क्या हुआ रीतिका, अब कैसा है चिराग?" अरुण ने आके पूछा.. असल मे वो मीटिंग मे था मीटिंग खत्म होते फोन ऑन किया तो शीना ने बताया उसे और वो हॉस्पिटल पहुँचा.
" अब ठीक है.. पर अरुण मैं बहुत डर गई थी!" अरुण को देख रीतिका रोते हुए गले लग गई उसके.
"बस रीतिका रो मत मैं डॉक्टर से मिल कर आता हूँ!"
अगले दिन चिराग को जरुरी हिदायतों के साथ छुट्टी मिल गई.. कुछ दिन मे वो सही भी हो गया.
" अरुण मैं आज से गाड़ी सीखने जा रही हूँ... शालिनी मुझे सिखा देगी उससे बात हो गई है!" एक दिन रीतिका अरुण से बोली.
" पर अचानक ये निर्णय?" अरुण ने पूछा.
" अचानक नही उस दिन जब मैं पागलों की तरह सड़क पर भाग रही थी चिराग को गोद मे ले तभी खुद पर गुस्सा भी आया था उस दिन शालिनी ना मिलती तो क्या होता सोच कर मेरी जान निकल जाती है!"
" चलो एक्सीडेंट के बाद ही सही तुम्हे समझ तो आई.!" अरुण बोला.
ये सच है दोस्तो जब महिलाएं हर चीज सम्भाल सकती तो ये कार क्या चीज है वैसे भी आत्म निर्भर होने मे बुराई क्या... अगर हमारे पास साधन हैं तो क्योंकि हादसे तो कभी भी हो सकते।
