मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

आत्मकथ्य -

आत्मकथ्य -

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आत्मकथ्य : कैसा रहा वर्ष 2020 मेरे लिए 

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जैसे सारी दुनिया के लिए वर्ष 2020 रहा, उससे कहीं ज्यादा अशुभ मेरे लिए रहा। कोरोना काल में किसी की किस्मत सोने से ज्यादा चमकी तो किसी की तबे की कालिख से ज्यादा काली रही। काली किस्मत वालों में अपना नाम दर्ज है और यह काफी लम्बे समय से यों ही अनवरत दर्ज दर दर्ज चला आ रहा है। और मुझे नहीं पता कि भविष्य में कब तक इसी तरह समस्याओं से जूझना पड़ेगा। ऐसा कोई प्रयत्न नहीं जो मैंने किया नहीं अपने बुरे वक्त को अच्छा बनाने के लिए। हाँ गलत रास्ता कभी अपनाया नहीं। झूठ, दिखावा, छल, कपट करता तो शायद अब तक मेरा नाम भी सफल व्यक्तियों में होता। पर मेरी टूटी कलम ने मुझे गलत कार्य करने नहीं दिये। एक असफल व्यक्ति का साथ उसका स्वयं का साया भी छोड़ देता है। परिवारीजन, यार-दोस्त, सगे -रिश्तेदार तो दूर की बात है। मैं एक महाअसफल व्यक्ति हूँ और बिल्कुल अकेला, अपने स्वयं के साये से भी अलग। दुनिया में सहयोग कोई नहीं करता, हाँ सलाह देने जरूर आ जायेंगे।  


आज मैं घोर निराशा की दुनिया में जी रहा हूँ। खुश होने के लिए लिखता हूँ और लिखने के बल पर ही जिंदा हूँ। आर्थिक दृष्टि से इतना कमजोर कि यहाँ लिख भी नहीं सकता, वैसे अगर लोग धोखा न देते तो शायद इतना कमजोर होता भी नहीं पर किस्मत को कहाँ ले जाऊं। जीवन में किस्मत का बहुत बड़ा रोल होता है।


जनवरी - साल की शुरूआत आगरा के एक नेता रौनक सोलंकी के कार्यक्रम से हुई। हाथरस में उसने हरियाणवी डांसर सपना चौधरी का एक कार्यक्रम आयोजित किया। मैं भी उस कार्यक्रम में गया था। कार्यक्रम में मुझे कुछ खास नजर नहीं आया। सपना चौधरी को पहली बार नजदीक से देखा। अपार भीड़ थी। पुलिस प्रशासन बेचारा इस तरह काम कर रहा था, मानो सपना चौधरी कितनी महान है। एक नचनिया वो भी अश्लील के लिए जनता हो, सरकारी अफसर हों सब लार टपका रहे थे। बहुत नजदीक से लोगों को देखा। गरीब लोग हजारों का टिकट लेकर सपना चौधरी के कूल्हे देखने के लिए उतावले हुए जा रहे थे। हालांकि मैंने कोई टिकट नहीं खरीदा था। अगर मुझे टिकट खरीदने पर ही ऐन्ट्री मिलती तो मैं कभी किसी सपना-फपना के कार्यक्रम में न जाता।


फरवरी - जनवरी के अन्त में विश्वशांति मानव सेवा समिति के एक कार्यक्रम में सहभागी हुआ। कार्यक्रम यूथ हॉस्टल में आयोजित था। कुछ समय बाद फरवरी की शुरुआत में गोआ की एक बिगडैल औरत ज्योति कुंकलकार मुझे अचानक फोन करती है और धमकाती है। जब मैंने उसे अपना पूरा परिचय दिया तो मेरा नं. ब्लैक लिस्ट में डालकर भाग गयी। पता नहीं देवीजी मुझसे क्यों खफा थी। मेरा उससे कोई परिचय तो था नहीं, ना ही कभी बात हुई थी। मैं उसको जानता भी नहीं था। हो सकता है वो वर्तमान सरकार के मुखिया की दीवानी हो, क्योंकि मैं सत्ता का विरोधी हूँ।


मार्च - माह की शुरूआत में मित्र प्रीतम की बारात में गया। फतेहाबाद तहसील परिसर में प्रीतम के साथ फोटो कॉपी की दुकान खोली। बौनी तक नहीं होती थी। बाद में दुकान बंद कर दी और कोरोना कहर भी शुरू हो गया था।  


अप्रैल - इस माह में भारत ही नहीं पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था और मैं अपने खेत में गेहूँ की फसल से जूझ रहा था।


मई - देश में हृदयविदारक माहौल रहा। मैं तो अपने गाँव में दुबका पड़ा रहा। बाहर निकलो तो पुलिस लट्ठ बजाती थी। एक दिन बाजार गया, खाली हाथ वापिस लौट आया था। पुलिस ने कोरोना काल में जनता का खूब तबला बजाया और लूट का तो उन्हें प्रमाणपत्र ही देदिया था सरकार ने।


जून- इस माह में सांसारिक रिश्तों के भाई-बहिन की शादी हो गई। वैसे अपनु के लिए चमार की चौथ वाली रहीं ये शादियाँ।


जुलाई + अगस्त - इस माह में अपनी भैंस को मुल्लाओं के हाथ बेचना पड़ा। वैसे मैं बेचना नहीं चाहता था पर पत्नी की टेंटें ने बिकवा दिया। जिसका मुझे बहुत दुख हुआ।


सितम्बर + अक्टूबर - इस माह में पारिवारिक कलह बहुत रहीं। अधिकांश समय खेत पर काम करते हुए गुजरा।  


नवम्बर - इस महीने में मेरे ऊपर संकट का पहाड़ टूट पड़ा। मैं जब खेत में पानी दे रहा था, तब छोटा बेटा मेरे पास घर से आ रहा था। जैसे ही वो मेरे नजदीक पहुंचा, एक चार पहिया छोटी कार की चपेट में आ गया। उसके दोनों पैरों में फ्रेक्चर हो गया। घाव भी बहुत हो गये। ईश्वर की कृपा से जान बच गई। दीपावली का त्यौहार हॉस्पीटल के चक्कर काटने में ही निकल गया।  


दिसम्बर - वर्ष का सबसे मनहूस महीना। माह के अंतिम चरण में जन्म - मृत्यु, अपने-पराये, मोह-माया, धन-वैराग्य सब कुछ एकदम से किसी फिल्म की तरह आँखों के सामने से गुजर गये। दुनिया के सबसे बड़े रिश्ते चुटकियों में कांच की तरह टूटकर बिखर गये, जिन्हें मैं वर्षों से बस किसी तरह आगे खींचता चला आ रहा था।  


आज मैं दुनिया का सबसे ज्यादा निराश, हारा-थका, टूटा हुआ व्यक्ति हूँ। मेरे अंदर हमेशा अशांति का एक सैलाब उमड़ता रहता है। और मैं उसे कभी अपने चेहरे पर नहीं आने देता। मैं स्वयं को इंसान नहीं मानता। मैं एक शैतान हूँ, क्योंकि आज तक मैंने इंसानों वाले कोई काम ही नहीं किये। मेरे अंदर छुपे शैतान को मैं हमेशा कंट्रोल करना चाहता हूँ और कर भी लेता हूँ पर ये पापी दुनिया वाले आते हैं मेरे अंदर बैठे शैतान को जगा देते हैं और मुझे शैतान बना देते हैं।  

मैं जब भी अकेला होता हूँ, शांत होता हूँ और कुछ अच्छा करने के लिए प्रयासरत रहता हूँ। अपने परिवार, समाज, राष्ट्र के प्रति सोचता हूँ, कि तभी कुछ अजीबो गरीब मेरे साथ घटित होने लगता है और मैं रिश्तों - नातों को भूलकर हैवान बन जाता हूँ। मैं सांसारिक मोह-माया को त्यागने की तमाम कोशिशें करता हूँ। पर कोई न कोई आ टपकता है और मेरे भीतर बैठे शैतान को जगा देता है।  

मैं संतुष्ट जीवन जीने का हर संभव प्रयास करता हूँ, संतुष्ट हो भी जाता हूँ। लेकिन मेरी वैराग्य वाली जिंदगी में मेरे पुराने जख्मों को ये दुनिया वाले कुरेद देते हैं। आज मेरे लिए दुनिया का लगभग हर रिश्ता मर चुका है। सच बताऊं तो मैं एक जिंदा लाश हूँ। बस अपनी कलम के बल पर जिंदा हूँ। वरना तो इस दुनिया में पारिवारिक कलह की भेंट बड़े - बड़े आई ए एस, पीसी एस आत्महत्या कर चुके हैं। कितनी बार ऐसे हालातों से होकर गुजर गया हूँ कि जिनका परिणाम तिहाड़ या फांसी का फंदा होता है। अखबारों में जब भी पढ़ता हूँ, देखता हूँ कि कैसे पारावारिक रिश्तों का खून हो जाता है। टूट जाता हूँ, क्योंकि उन्हीं परिस्थितियों में कभी-कभी मैं फंस जाता हूँ। चक्की के दो पाटों के बीच में मैं आज बुरी तरह से फंस गया हूं। डर है कि कहीं अखबारों वाली खबर मेरी खबर न बनजाये। मैं जिन कर्मों से दूर भागता हूँ वे आकर मुझसे चिपट जाते हैं और जिन सद्कर्मों के पीछे भागता हूँ वे मुझसे दूर-दूर भागते हैं।  


कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी में ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे। आज जिंदगी महाभारत हो गई है। मैं संसार का सबसे बड़ा महापापी हूँ...। फिलहाल जीने की इच्छा नहीं है और आत्महत्या करके मरना भी नहीं चाहता। अब तो बस एक मशीन की तरह जिंदगी गुजर रही है। कोई भी आता है चाबी लगा के चला जाता है। हाँ कभी-कभी खुदखुशी करने का विचार मन में आता है, पर मैं कायरता का परिचय नहीं देना चाहता। जिंदगी में कितने ही बुरे हालात पैदा हो जायें पर आत्महत्या वाला विकल्प कभी नहीं चुनूंगा। यह साल लड़ाई-झगड़ों वाले खतरनाक - हिंसक दृश्यों को देखने के साथ खत्म हो गया।  


 हे परमेश्वर आने वाला 2021 मेरे लिए और इस संसार के लिए सुख शांति वाला हो... बस इतनी सी मेरी प्रार्थना है।



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