Gautam Kothari

Inspirational

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Gautam Kothari

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आत्मज्ञान की यात्रा[[भाग-13]]

आत्मज्ञान की यात्रा[[भाग-13]]

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होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेंडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।

मान्यताएँ

होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं। क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं इसलिए होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी को कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परम्परा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंतेष्ठि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।

होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता

होलिका दहन, मथुरा

होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी ख़ास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऐसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूटकर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते हैं। अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते हैं।

होलाष्टक में कार्य निषेध

होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है। वहीं कुछ कार्य ऐसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते हैं। होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।

धर्म ग्रंथों में होलाष्टक के 8 दिन मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ माने जाते हैं. इसके पीछे कई मान्यताएं हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश करने पर भोलेनाथ से कामदेव को फाल्गुन महीने की अष्टमी को भस्म कर दिया था. प्रेम के देवता कामदेव के भस्मा होते ही पूरे संसार में शोक की लहर फैल गई थी. तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना की और भोलेनाथ ने कामदेव को फिर से जीवित करने का आश्वासन दिया. इसके बाद लोगों ने रंग खेलकर खुशी मनाई थी.

कुछ ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि होली के 8 दिन पहले से प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने काफी यातनाएं देना शुरू कर दिया था. आठवें दिन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठाकर मारने का प्रयास किया गया था लेकिन आग में ना जलने का वारदान पाने वाली होलिका जल गई थी और बालक प्रह्लाद बच गया था. ईश्वर भक्त प्रह्लाद के यातना भरे 8 दिनों को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए कोई भी शुभ काम ना करने की परंपरा है.

इस साल होलाष्टक 10 मार्च से लग रहे हैं जो 17 मार्च तक चलेंगे. होलाष्टक 10 मार्च को सुबह 02:56 बजे से शुरू हो जाएंगे और होलिका दहन के दिन यानी 17 मार्च को खत्म होंगे. होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है।



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