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Saroj Verma

Tragedy

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Saroj Verma

Tragedy

आशा

आशा

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आज धनतेरस है,

सुबह-सुबह का समय है,चंपा ने सबके लिए खाना बनाया और अपने लिए खाना बांधा, हंसिया उठाया,अपने लिए एक और धोती लेकर निकल पड़ी खेतों में जानवरों के लिए घास काटने।

घर से निकलते समय सास बोली,जल्दी आ जाना दोपहर तक,आज त्योहार है और शाम तक गुलजारी भी आ जाएगा, फिर पूजा की भी तैयारियां करनी है, काकी की बहु के साथ बातों में मत उलझ जाना।

वो जाते हुए बोली, अच्छा अम्मा!

नहर पार करके, मेड़ों के ऊपर से जाती हुई पहुंच गई खेतों में, अभी गेहूं के पौधे छोटे-छोटे है, लेकिन चने के पौधे थोड़े बढ़ गए हैं, चंपा ने एक दो मुट्ठी चने का साग तोड़ा और घर से लाई भरवां हरे मिर्च के अचार के साथ वहीं मेड़ पर बैठ कर खाने लगी,सुबह से अभी बैठने की फुरसत मिली है उसे, थोड़ी देर सुस्ताने के बाद घास काटने में लग गई,गेहूं और चने के खेत के बीच में बहुत ही खरपतवार उग आई है, अगर ना काटो तो फसल नहीं पनपेगी।

घास काटने के बाद बड़ा सा गट्ठर बना,अपना और भी समान लेकर निकल पड़ी,नहर की ओर नहाने, उसने अपना गट्ठर रखा, तभी बेला भी आ गई, काकी की बहु और उसकी एकमात्र सहेली जिससे वो सुख -दुख की बातें करती है।

आज वो उसके लिए तेल-फुलेल लाई थीं, चंपा ने मंगाया था,आज चंपा का पति शहर से आने वाला था,वो वहां रिक्शा चलाता है और जब भी गांव आता है यही कहता है कि इस बार तुझे शहर ले चलूंगा।

चंपा ने मिट्टी से अच्छे से बाल धोकर नहाया, अपने साथ वो आज नई सूती धोती लेकर आई थी, उसने आज वही पहनी, पिछली बार उसका पति शहर से लेकर आया था।

फिर चंपा और बेला ने अपना-अपना खाना खोला और खाया ,अब चंपा के बाल सूख चुके थे, बेला ने चंपा के बालों में चमेली की खुशबू वाला तेल लगाया, उसके बाल बांधे, आंखों में काजल लगाया,चंपा पानी में अपनी परछाई देखकर खुद ही शरमा गई।

फिर घर पहुंच कर, पूजा की तैयारी की,रसोई में जाकर खाना बनाने में लग गई,इतने बड़े परिवार का खाना बनाने में समय लगता है,चार देवर,दो ननद, सास-ससुर।

शाम तक गुलज़ारी भी आ गया,शाम की पूजा और फिर सबके खाने पीने में बहुत समय हो गया,रात हो गई।

रात में गुलज़ारी कमरे में आया, दोनों में बातें हुई, चंपा ने पूछा इस बार लें चलोगे साथ में,तीन साल हो गए हैं शादी को और हम लोग दस पन्द्रह दिन से ज्यादा साथ में नहीं रह पाए।

हां,इस बार लें चलूंगा, गुलज़ारी ने कहा____

इसी तरह एक हफ्ते बीत गये___

गुलज़ारी दीवाली का त्योहार मनाकर चला गया, वो इस बार भी चंपा को नहीं ले गया, बोला इस बार भी पैसे नहीं बचे, तुझे अगली बार साथ ले चलूंगा__

चंपा को अभी भी आशा है कि अब की बार उसका पति उसको अपने साथ जरूर लें जाएगा।


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