आशा की किरण

आशा की किरण

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सरहद के पास बने शिक्षा सदन आवासीय स्कूल में आज सभी बच्चे व शिक्षक शांत थे। कक्षाएं सूनी थीं। प्लेग्राउंड में सन्नाटा पसरा था। जो स्थानीय छात्र थे उनकी छुट्टी कर दी गई थी। किंतु जो छात्रावास में रहते थे उन्हें स्कूल के हॉल में इकट्ठा कर लिया गया था। स्कूल के प्रिंसिपल, वार्डन तथा दो अध्यापक जो स्कूल में ही रहते थे बच्चों को संभाल रहे थे। प्रिंसिपल जगतराम ने बच्चों की हिम्मत बंधाते हुए कहा।

"बच्चों तुम लोग घबराओ नहीं। हमारी सरकार पड़ोसी मुल्क से शांति बनाए रखने के प्रयास कर रही है। सब ठीक हो जाएगा। तुम सब जल्द ही पढ़ाई शुरू कर सकोगे।"

दो दिनों से सरहद पार से शेलिंग हो रही थी। कल एक मोर्टार आकर छात्रावास के एक हिस्से पर गिरा। सौभाग्यवश उस समय कोई भी छात्र डॉरमेटरी में नहीं था। सब डाइनिंग हाल में थे। लेकिन बच्चों में दहशत फैल गई।

यह स्कूल एक रिटायर्ड फ़ौजी जगतराम ने खोला था। उनका अपना बचपन अभावों में बीता था। अतः उन बच्चों का दर्द समझते थे जिन्हें जीवन में आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल पाता है। ऐसे ही ग़रीब और अनाथ बच्चों के लिए यह स्कूल था। प्रिंसिपल जगतराम ने सभी बच्चों के साथ मिल कर ईश्वर से प्रार्थना की कि जल्द ही शांति बहाल हो।

संजय इसी स्कूल के छात्रावास में रहता था। दिहाड़ी मज़दूर उसके पिता के लिए उसका और उसके भाई बहनों का पेट भरना ही कठिन था। संजय पढ़ लिख कर कुछ करना चाहता था। उसे जब शिक्षा सदन के बारे में पता चला तो अपने पिता से इजाज़त लेकर वह खुद ही यहाँ आ पहुँचा। उसकी लगन से प्रभावित जगतराम ने उसे स्कूल में दाखिल कर लिया। संजय बहुत ही मेधावी था। इस साल वह दसवीं कक्षा में था। कल से ही एक प्रश्न उसे परेशान किए था। वह उसका जवाब लेने जगतराम के पास पहुँचा।

"सर दुनिया में लोग बातें तो शांति की करते हैं। पर हर जगह ही अशांति है। ऐसा क्यों है ?"

जगतराम उसके इस सवाल से प्रभावित हुए। उन्होंने समझाया।

"बेटा लोग मंचों पर तो बड़ी बड़ी बातें करते हैं। पर वास्तविकता में चाहे कोई व्यक्ति हो या मुल्क अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पाते। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को दबाते हैं। जब तक निजी स्वार्थों से हम ऊपर नहीं उठेंगे तब तक शांति की बातें होंगी पर शांति नहीं।"

जगतराम की बात सुन कर संजय कुछ उदास हो गया। उसकी मनोदशा भांपते हुए जगतराम ने कहा।

"लेकिन निराश होने की ज़रूरत नहीं। आने वाला कल तुम लोगों का है। तुम लोग अपनी सोच उदार बनाओ। सब ठीक हो जाएगा।"

संजय यह सुन कर मुस्कुरा दिया। 

तभी वार्डन सर ने खबर दी कि सरकार के प्रयास सफल हो गए हैं। सरहद पार से शेलिंग बंद हो गई है। अचानक ही पसरा हुआ सन्नाटा बच्चों के हर्षनाद से डर कर भाग गया।


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