आस
आस
बड़े शहरों में अक्सर लोग किसी से ज़्यादा मेल-मिलाप नहीं रखते। उन्हें अपने पड़ोस में कौन रहता है इसकी भी ख़बर नहीं। शहरों का कलचर मुझे तो रास नहीं आता। अरे भई कम से कम दो चार घर तो हो। हम छोटे शहर या गांव के लोग हर एक के दुख-सुख में हमेशा साथ रहते है।
मैं भी हमारे कॉलोनी के पार्क में घूमने जाती थी। वहां की भाषा में इवनिंग वॉक पर जाती थी। अक्सर एक बुज़ुर्ग महिला को अकेले बैठे उदास देखती थी। मैने सोचा इनसे बातचीत की जाए।
"आप कहाँ से आंटी"
उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैने मालूम किया तो पता चला उनका इकलौता बेटा "अमेरिका" पढ़ने गया था पर वापस नहीं आया और आंटी विधवा है।
उनके मिस्टर डॉक्टर थे वो अपनी बहन के पास रहती है। उनका बेटा "आकाशदीप" "मिसेज़ खन्ना" का सहारा, एक तीन मंज़िल मकान था, उसे भी बेचकर बाहर पढ़ने चला गया।
अब कई साल हो गए मिसेज़ खन्ना को "आस" है एक दिन वो लौट आएगा पर सुना है उसने वहीं "गौरी मेम" से शादी कर ली है। वहां की नागरिकता ले ली है, ये बूढ़ी माँ बस "आस" में जी रही है।