आंखें...!!
आंखें...!!
सुनो...
जरा संभालो अपनी आंखों को,
वो उस दिन जब तुम्हारी आँखों से मिली थी मेरी आँखें तब दीदार-ए-जन्नत हो गया था,
वो लम्हा वही थम सा गया था,
दिल जो धड़कता था जोरों से वो उस पल जरा थम सा गया था।
लगा मानो बस यही मंज़िल है मेरी।
लगा उस लम्हे वो पल जिसका इंतज़ार था बड़ी शिद्दत से मिल गया हो। तुम सामने थी लगा पूरा जहां मेरा मेरे सामने है।
नज़रें थम गई थी ऐसे ,जैसे मानो समंदर शांत हो सुनामी से पहले। लगा ऐसा की मानो हृदय की तपन को एक शीतल हवा का एक धीमा सा झोंका मिल गया हो।
वो पल जो महज एक पल था पर आज जिंदगी बन गया मेरी। नजरें जब उन आंखों की गहराइयों से उभरीं तो उनके आंखों की पहरेदारी कर रहे काजल में उलझ गई।
नज़रें जो उनकी आंखों में उलझी थी मन कर रहा था कभी न सुलझें , दुआ थी कि ये लम्हा बस रुक जाए यहीं ..
ये पल बस थम जाए और जिंदगी इन्हीं आंखों की उलझन में जिंदगी भर के लिए उलझ जाए...!