आख़िरी उबाल"
आख़िरी उबाल"
"आख़िरी उबाल"
शाम की हल्की ठंडक थी। स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर भाप उड़ाती एक केतली सिसकारियाँ भर रही थी।
रामू चायवाला हर रोज़ की तरह अपनी स्टील की केतली लेकर खड़ा था — मगर आज कुछ अलग था।
आज उसकी चाय में चीनी ज़रा ज़्यादा थी।
क्योंकि आज वो चाय किसी और के लिए बना रहा था — अपने पुराने ग्राहक, मिस्टर मेहता के लिए, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।
तीन साल पहले, मिस्टर मेहता रोज़ ऑफिस जाते हुए वहीँ रुकते थे। कहते,
> "रामू, चाय में उबाल तो ज़िंदगी जैसा होना चाहिए — तेज़, पर ज़्यादा देर नहीं।"
रामू हँस देता, “साहब, आपकी चाय भी तो हमेशा सोच में डूबी रहती थी।”
एक दिन अचानक खबर आई — मेहता साहब का हार्ट अटैक से निधन हो गया।
रामू कई दिनों तक चाय नहीं बना पाया। केतली देखते ही आँखें भर जातीं।
पर आज, बरसों बाद, उसने वही पुराना स्वाद याद करके चाय बनाई —
तेज़ उबाल, ज़रा ज़्यादा अदरक, और हल्की इलायची।
उसने कप में चाय भरी, प्लेटफॉर्म के कोने में रखा, और धीरे से बोला,
> “साहब, आपकी चाय ठंडी हो जाएगी…”
पास बैठा एक अजनबी मुस्कराया —
“भाई, किसी अपने को याद करते हो क्या?”
रामू ने बस सिर हिलाया और बोला,
> “नहीं साहब, मैं तो बस हर शाम चाय में किसी न किसी को ज़िन्दा रख लेता हूँ।”
भाप धीरे-धीरे हवा में घुल गई।
और स्टेशन पर एक अजीब-सी गर्माहट फैल गई — जैसे किसी ने यादों में दूध और दर्द बराबर मिला दिया हो।
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