Dr Jogender Singh(jogi)

Drama Horror

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Dr Jogender Singh(jogi)

Drama Horror

आख़िरी हँसी

आख़िरी हँसी

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धम्म / धम्म, धम्म / धम्म नीरज की नींद टूट गयी, उसने उठ कर बोतल से दो घूँट पानी पीया। खिड़की से बाहर झांका, अँधेरा पसरा पड़ा था, आवाज़ भी बंद हो गयी। बिस्तर पर लेट, करवट अदल/ बदल कर नीरज सोने की कोशिश करने लगा। अमूमन नीरज की नींद बहुत गहरी और पक्की होती है। पर आज न जाने क्या हो गया, बार / बार नींद टूट रही थी।थोड़ी देर की उलट / पलट के बाद फिर से नींद आ गई। धम्म / धम्म, धम्म / धम्म, फिर से, नीरज झल्ला कर बैठ गया। यह क्या तमाशा हो रहा है ? उसकी नींद उड़ चुकी थी, ध्यान देकर सुनने की कोशिश की, एकदम सन्नाटा, वैसे भी रात के इस पहर में कोई आवाज़ क्यों आती। उसने खिड़की के काँच के पल्ले खोल दिए, बाहर की गर्म हवा ने चेहरे को सेंक दिया। यह क्या कोई सुबक रहा है, नीरज के कान खड़े हो गये, वो ध्यान से सुनने लगा। कोई सुबक रहा था, बीच / बीच में हिचकी लेता हुआ। वो खिड़की के एकदम पास आ गया। खिड़की से बाहर झांका, सामने वाली सड़क पर सन्नाटा था, सड़क किनारे खड़े बिजली के पोल पर टंगी सोलर लाइट पीली रोशनी फेंक रही थी। कोई भी नज़र नहीं आया, पर सुबकने की आवाज़ लगातार आ रही थी।परेशान होकर वो पलटा, आप कौन ? बस इतना ही बोल पाया, वो एकटक उस सुंदरी को देखता रह गया, जो कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठी थी, अद्वितीय सौंदर्य, सुंदरी की आँखों में आँसू थे। अब सुबकने की आवाज़ नहीं आ रही थी, पर वो रो रही थी।

नीरज मंत्रमुग्ध उसको देखे जा रहा था। ऐसी रूपसी उसने अपने अट्ठाईस साल के जीवन में नहीं देखी। उस के रूप की चकाचौंध में वो ऐसे खोया कि उसको इतना भी ध्यान नहीं रहा कि बंद कमरे के अंदर वो कैसे आ गयी, और कमरे की लाइट किसने जला दी। नीरज अपलक उसको देखे जा रहा था।वो रोना छोड़, धीरे से मुस्कुराई।उफ़्फ़ !! कितनी क़ातिल मुस्कुराहट, नीरज किसी सम्मोहित नाज़ुक बच्चे के माफ़िक़ उसके सामने बैठ गया। वो मुस्कुराये जा रही थी, एक दिलकश मुस्कान।

" आप क्यों रो रहे हो ? नीरज ने आत्मीयता से पूछा, मानो बरसों से उसे जानता हो। 

" मैं कहाँ रो रही हूँ, वो हँसी। उसके सामने वाले दाँत मोती की तरह चमक उठे। आप ने स्वप्न देखा होगा। मैं कभी नहीं रोती। मेरा नाम जानते हो ? हंसिका है मेरा नाम, मैं क्यों रोऊँगी ? उसने अपने बालों को हाथ से सँवारा।अपने लम्बे बालों को कन्धे से सीने के बाईं और फैला लिया। चमेली की ख़ुशबू से पूरा कमरा महक गया। लम्बे, चमकीले बाल बेहद खूबसूरत थे, नीरज दूर से मखमली केशों से मन ही मन खेलने लगा। 

छुओगे !! उसने बालों को गोद में फैलाते हुए एकदम से प्रश्न दाग दिया। 

हाँ, हूँ, न, नहीं। नीरज हकला गया, उसको किसी ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी। कम से कम एक अजनबी से तो बिल्कुल नहीं।नीरज झेंप गया।

इसमें कैसी शर्म, बाल छूना कोई पाप थोड़े होता है, उसने नीरज के अरमानों को हवा दी।

नहीं !! किसी पराई स्त्री के किसी भी अंग को छूना पाप है। नीरज दृढ़ आवाज़ में बोला। और आप अंदर कैसे आयी ? उसका सम्मोहन ख़त्म होने लगा। और कमरे की लाइट किसने जलाई ? 

तुम दरवाज़ा बंद करना भूल गए थे, लाइट मैंने ही जलाई। हंसिका ने मुस्कुराने की असफल कोशिश की।

आप क्या किसी के भी कमरे में बिना जान / पहचान, बिना दरवाज़ा खटखटाये चली जाती हो ? नीरज का संदेह गहराता जा रहा था।

छोड़ो बेकार की बातें मत करो,आओ मिल कर प्यार करें। वो फिर से मुस्कुराई। 

नीरज फिर उसकी मुस्कुराहट में खोने लगा, " नहीं, यह ठीक नहीं है। नीरज मानो नींद से जाग गया।

तुम कैसे आदमी हो ? वो ज़ोर से हँसी। आज के जमाने में ऐसे भी आदमी होते हैं ? विश्वास नहीं होता। अब मैं यहाँ कभी नहीं आऊँगी। ज़ोर की हँसी के साथ हंसिका ग़ायब हो गयी। नीरज खिड़की बंद करके बिस्तर पर लेट गया, नींद उड़ गयी, वो सुबह होने का इंतज़ार करने लगा।तो क्या वो वाक़ई उसकी आख़िरी हँसी थी ? सोचते हुए नीरज की आँख लग गयी।

साहब चाय ले आऊँ ? थापा की आवाज़ से नीरज की आँख खुली।

ले आओ थापा, नीरज बाथरूम में जाते हुए बोला।

" साहब, इतने सालों में आज पहली बार इस डाक बँगले में कोई मेहमान बेड पर लेटा मिला, नहीं तो सुबह सब फ़र्श पर नंगे पड़े मिलते थे।थापा नीरज को चाय देते हुए बोला। पर साहब हँसने की आवाज़ तो कल रात भी सुनी थी। 

थापा, वो उसकी आख़िरी हँसी थी। नीरज पूरे विश्वास से बोला।


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