आखिर मैं भी नारी हूं
आखिर मैं भी नारी हूं


राम-राम रज्जो ......
राम राम दीदी, कैसी हो दीदी।
अच्छी हूं तू, बता तू कैसी है।
हां दीदी अब तो ठीक हूं, आपका कर्ज कहां उतारूंगी दीदी, आप ना होते तो ना जाने मेरा क्या होता, एक तो ये बुढ़ापा उस पर दमे की बीमारी, मेरे अपने साथी ही मुझे अकेला छोड़ गए, जब तक जवान थी, अच्छी -खासी कमाई भी होती थी तब तक तो सब अपने ही थे।
क्या मेरे अन्दर दिल नहीं धड़कता, क्या मुझे कोई चाह नहीं होती, क्या मेरे अन्दर ममता नहीं ? आखिर मैं भी नारी ही हूं !
अरी छोड़ ना उन बातों को, जिससे तकलीफ़ हो वो बातें क्यों दोहरानी ??
और सुन आज के बाद कर्ज - वर्ज की बात ना करना, कर्जदार तो हम हैं तुम्हारे, मुझे आज भी वो दिन भुलाए नहीं भूलता।
आशा अतीत में.... आशा का इकलौता बेटा आलोक स्कूल से आते हुए उसकी साइकिल को बस ने टक्कर मारी थी, साथ में जो साथी थे और भी उन्होंने अस्पताल पहुंचाया घर पर सन्देश दिया, सब आस- पड़ोस वाले और रिश्तेदार सब पहुंच गए ।
आलोक ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहा है, खून की ज़रूरत है, किस्मत का खेल माता-पिता का खून मिलान नहीं हुआ और रिश्तेदार भी कन्नी काटने लगे, कहीं से खून का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा था। आशा के पड़ोस में लगभग 3-4 साल पहले कुछ किन्नर रहने आए थे, सब लोग उन्हें देख कर मुंह मोड़ लेते, मगर आशा उनसे अच्छे से बात करती और आलोक भी उनसे काफी घुल-मिल गया था। आलोक और रज्जो की आपस में काफी बनती थी, रज्जो के अन्दर की ममता हुलारे मारती वो जब भी आलोक को देखती।
रज्जो को आलोक का पता चला तो दौड़ी - दौड़ी अस्पताल पहुंची, सारी बात जान कर ..... डा
क्टर साहब आप मेरा सारा खून ले लो मगर मेरे आलोक को बचा लो ।
देखिए अगर आप का खून मिलान होगा तभी तो हम चढ़ा पाएंगे आलोक को।
खून में क्या मिलान डाक्टर, खून तो खून है सबका एक समान, उस समय वो सोचने की हालत में नहीं थी कि ग्रुप मैच किया जाता है। ईश्वर का चमत्कार कहिए रज्जो का खून मैच कर गया और आलोक ठीक हो गया, तब से आशा कहती थी,आलोक रज्जो का बेटा है, उसी ने जीवन दान दिया है आलोक को।
आज आलोक पढ़ - लिख कर एक बहुत बड़ा अफसर बन गया है लेकिन आलोक और रज्जो का रिश्ता कम नहीं हुआ, वक्त के साथ और गहरा हो गया। रज्जो को टी. बी. हो गई और बुजुर्ग भी हो गई अपने सब छोड़ कर चले गए, बाकी पड़ोसी तो पहले से ही पसंद नहीं करते थे, आलोक और आशा खूब अच्छे से ख़्याल रखते हैं रज्जो का।
अचानक रज्जो की तबीयत बिगड़ी गई आशा ने आलोक को बुला लिया उसे अस्पताल ले गए, डाक्टर ने बताया आखिरी सांसें हैं, आलोक और आशा की आंखों में आंसू हैं।
दीदी रोते क्यों हो एक ना एक दिन तो सबको जाना है, आलोक तूने मेरी बहुत सेवा की, बहुत प्यार दिया, मेरे पास कुछ भी नहीं तुझे देने को, मेरा खाना - पानी भी सब तुम्हीं करते हो।
आंटी ऐसा मत कहो अगर आप को कुछ देना है तो अपने अन्तिम संस्कार का हक दो मुझे, एक बार मां कहने का हक दो मुझे, आप मेरी छोटी मां हो।
आज रज्जो कि नारीत्व पूरा हो गया, आज वो भी एक संपूर्ण नारी बन गई।
रज्जो के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कुराहट है .... आलोक मेरे बच्चे आज मेरा जीवन सफल हो गया मैं ईश्वर के घर मां बन कर जा रही हूं, अब मुझे ईश्वर से कोई शिकवा नहीं है। कहते - कहते रज्जो अंतिम हिचकी लेती है ।