Shreeya Dhapola

Drama

4.7  

Shreeya Dhapola

Drama

आग का देवता

आग का देवता

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अग्नि विध्वंस करती है , अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर देती है , बडे़ से बड़े जंगल का घमंड पल भर में चूर कर देती है , किसी के लिए अभिशाप है तो किसी के लिए आशीर्वाद। अग्नि नए रिश्तों का , शुभ कामों का आधार भी बनती है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी सुबह कार्य करने से पूर्व अगर हवन किया जाए तो बुरी शक्तियों का प्रभाव कम पड़ जाता है।


पर उसके लिए ना तो अग्नि विध्वंस थी ना ही आधार , उसके लिए तो वो पेट पालने का ज़रिया थी। आप कहेंगे कैसे?


विनय , लोग उसे आग का देवता बुलाते थे। उसने पढ़ाई कि थी "बी ए " तक मगर कोई रोज़गार नहीं मिला उसे। उसके पिताजी ने यही काम कर के पढ़ाया था उसे , सोचा था वो नहीं पढ़ पाए तो क्या हुआ , उनका बेटा पढ़ेगा और बड़ा आदमी बनेगा। अव्वल था वो पढ़ाई में, मगर नौकरी के नाम पर हर जगह से बस ठोकर ही खाई उसने फिर थक हार कर उसने ये पुश्तैनी काम ही करने सोची। 


आग के करतब दिखाना, छड़ी के दोनों हिस्सों में कपड़ा बांध कर उसपर आग लगाना और इस सफाई से उसे चारों तरफ घुमाना की लोगों को लगे ये कोई भी ऐरा गेरा कर सकता है , जब असल ने कोई उसे पकड़े भी तो उसके पसीने छूट जाए । बहुत ज़ोखिम भरा काम था ये मगर इन लोगों ने उसमें महारथ हासिल कर ली थी।उसके परिवार में पुश्तों से चली आ रही परंपरा थी ये , जो उनकी जीविका भी थी। पुराने ज़माने में, राजा महाराजाओं के समय तो उन्हें मुंह मांगी कीमत मिल जाती थी और रहन सहन भी अच्छा ही था मगर आज के समय में ये हुनर बस सर्कस तक ही सीमित रह गया है । 


"जंबो सर्कस" फोरबेसगंज शहर के बीचों बीच स्थित ये जगह अब कर्म भूमि बन चुकी थी उसकी, अपने पिता की जगह उसने ले ली थी यहां और अपने पिता से कई ज्यादा हुनर था उसमे, ऐसा लोग कहते थे। उसको देखने के लिए लोग दूर देशों से भी आते थे । ना जाने कैसे वो उस छड़ी को घूमता था , आग के गोले के बीचों बीच से निकालना , आग को अपने मुंह में निगलना , जलते अंगारों के ऊपर से चलना पर उसके पैरों पर एक छाला नहीं मानों अग्नि देवता उसमें समा गए हों।सर्कस में सबका चहिता था और सबकी आंखों का तारा था। वो सर्कस नहीं दूसरा परिवार था उसका।


सब कुछ ठीक चल रहा था , परिवार के भरण पोषण जितने पैसे भी आ जाते थे मगर अचानक एक दिन उनकी कर्म भूमि पर किसी बडे़ बिल्डर की नज़र पड़ गई। वो जगह सर्कस के मालिक ने लीज़ पर ले रखी थी पर उस बिल्डर को वहां पर एक आलीशान सोसायटी बनानी थी । उसने सरकारी अफसरों को घूस खिला के वो जगह अपने नाम करने के लिए कोर्ट में अर्जी डाल दी।अपने फायदे के लिए कितने लोगों का रोज़गार छीनने वाला था वो , इससे उसे फर्क भी नहीं पड़ रहा था।


सर्कस का मालिक बहुत परेशान रहने लगा था पर उसने इस बात की भनक किसी को नहीं लगने दी, उसे लगा कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा , वो लोग कैसे जीत जाएंगे पर समय जैसे उसके हाथ से निकलने लगा था।

विनय उनको कई दिन से देख रहा था और आखिरकार उसने उनसे पूछ ही लिया। आंखों में आसूं लिए पीटर बाबू ने उसे सब बता दिया।पहले तो उसने उनसे कहा कि " आपको ये मुझे पहले बताना चाहिए था , मैं ज़रूर इस बारे में कुछ करता , हां माना की बस करतब दिखाने वाला हूं में पर हम सब मिलकर इसका हल ज़रूर निकल लेते"। उसने उनका मनोबल बढ़ाया और दिलासा दिया की वो ज़रूर इस बारे में कुछ करेगा।


वो कैफे गया , वहां इंटरनेट पर उसने पता लगाया कि ऐसी कोई संस्था है जो गरीबों को उनका हक दिलाने में उनकी मदद कर सकती है । उसे "पंख " नामकी संस्था के बारे में पता लगा और वो अपनी परेशानी लेकर उनके पास गया। उसने उन्हें समझाया कि किस तरह अगर वहां बड़ी बिल्डिंग बन जाएगी तो कितने गरीबों का रोज़गार चला जाएगा। आज जो लोग अपनी मेहनत से पैसे कमा रहे है ,कल को वो सड़कों पर भीख मांगने पर मज़बूर हो जाएंगे।

उसकी परेशानी समझ कर एनजीओ वालों ने उसकी मदद करने की ठान ली।


ये काम तो सुलझ गया था पर सर्कस वालों को कैसे समझाए बस ये ही चिंता उसे सताए जा रही थी। वो वापस पहुंचा तो सब लोग उसका इंतज़ार कर रहे थे , उन्हें पता चल चुका था। विनय ने उन्हें समझाया , उसे लगा था वो लोग डर के माना कर देंगे , क्योंकि लड़ाई बहुत लंबी चलेगी और वो ये सोचेंगे कि इतने ताकतवर लोगों के सामने वो कैसे टिक पाएंगे। पर उन लोगों ने उससे बस ये कहा कि "इस जंग में हम आपके साथ है, जो होगा देखा जायेगा , ये हमारी कर्मभूमि है और इसे हम ऐसे ही नहीं खो सकते "।


और अगले ही दिन से बिल्डर के घर के बाहर विनय, उसके साथी और एनजीओ वाले धरने पर उतर आए। सोशल मीडिया पर , फेसबुक , वॉट्सएप ,ट्विटर पर बस एक ही चेज छाई हुई थी ,कि कैसे बिल्डर रोशन अपने फायदे के लिए गरीबों के पेट पर लात मार रहा है।

हर तरफ से रोशन पर इतना दबाव बनाया गया और ना जाने कहां से लोगों को उसके पुराने अवैध कामों का पता चल गया , सब सबूत सोशल मीडिया पर वायरल हो गए । अंत में पूरे दो महीने बाद रोशन को अपने घुटने टेकने पड़े और कोर्ट से अपनी अर्जी वापस लेनी पड़ी। कोर्ट ने ये फैसला सुनाया कि वो ज़मीन अब से "जंबो सर्कस" वालों की रहेगी और कोई भी उसपर अपना हक नहीं जाता सकता।


ये तो एनजीओ वालों और सर्कस वालों के लिए एक ऐतिहासिक जीत बन गई थी।विनय सबका हीरो बन चुका था , एनजीओ वाले और सर्कस वाले उसे बधाइयां देते नहीं थक रहे थे। उसकी कोशिशों की वजह से आज उन्होंने ये जीत हासिल की ।


पहले तो सब उसे आग का देवता कहते थे पर आज सही मायनों में वो उन सबका देवता बन चुका था, जिसने उनका रोज़गार उन्हें वापस दिलाया । उनके परिवार वाले और बच्चे उसे आशीर्वाद दे रहे थे और ये कह रहे थे कि "उन्होंने भगवान तो कभी नहीं देखा पर उसमें आज एक देवता एक भगवान देख लिया।"


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