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V. Aaradhyaa

Inspirational

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V. Aaradhyaa

Inspirational

3)मैं चूल्हा चौका नहीं करुँगी

3)मैं चूल्हा चौका नहीं करुँगी

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प्रिय पाठकों,


 अब तक आपन पढ़ा कि...


जब से काव्या नौकरी करने लगी थी घर की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई थी। और काव्य में आत्मविश्वास तो आया ही था , साथ में एक मिथ्या घमंड भी आ गया था। जिसकी वजह से वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती थी।


 उसक बदले हुए तेवर देखकर उसका पति मानव भी कुछ नहीं कहता था।और घर के लोग भी थोड़े दबे दबे से रहते थे।


 काव्या का बेटा पढ़ाई में पिछड़ता जा रहा था और अब उसका स्वास्थ्य भी पहले की तरह नहीं रहा था।

 अब आगे पढ़िए....


 घर की बिगड़ी हुई व्यवस्था और नौकरी के साथ सामंजस्य से बैठाती हुई काव्या अब बहुत चिड़चिड़ी होती जा रही थी, और एक तरह से अब बात बर्दाश्त के बाहर थी।


 काव्या ने कुछ अपने अनुभव और दूसरों की बात समझने की कोशिश की...

 तो उसे कई बार अपनी नजर गलती नजर आने लगी।

काव्या को अब अचानक घर की प्रति थोड़ा रुझान होने लगा था।


क्योंकि....इन दिनों और उसका बेटा विक्की बहुत बीमार हो गया था और कमज़ोर भी। तब काव्या को थोड़ा होश आया और वह अपने बच्चे के लिए एकदम से सावधान हो गई।


विक्की की हालत देखकर काव्या बहुत पारेशान हो गई थी इसलिए अब उसका ध्यान बार बार अपने बेटे के स्वास्थ्य पर रहने लगा था। वह सोच रही थी कि अब वह थोड़ा रसोई पर भी ध्यान दिया करेगी।


अगर पूरा खाना ना भी बना पाए तो कम से कम खाना बनाने वाली को समझा तो सकती है कि वह खाने में मसाले थोड़ा कम डाला करे और सब्जी या दाल की ग्रेवी को गाढ़ा करने के लिए आटा या मैदा ना डाला करे। वह पेट में खराबी करता है।


 अब कुछ समय निकालकर काव्य अपने बेटे को पढ़ाने भी लगी थी।


 " मम्मा ! अब आप मुझे पहले की तरह प्यार करते हो और पढ़ाते हो इसलिए मुझे आजकल पढ़ने में बहुत मन लगता है। देखना...मैं फिर से पहले की तरह अच्छे से पढ़ने लगूंगा!"


जब बेटा कहता तो काव्या उसको सीने से लगाकर प्यार करती और सोचती कि वह घर का काम करते हुए भी नौकरी अच्छे से कर सकती है


 बात समय की नहीं थी...


बल्कि बात काव्या  की मानसिकता की थी।


 जब से उसने यह समझ लिया कि,


जिम्मेदारी एक अलग बात होती है, फिर चाहे वह घर की हो या ऑफिस की। उसमें अपनी कार्य कुशलता बराबर दिखानी पड़ती है। और कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता और ना ही हाउसवाइफ हेय दृष्टि से देखी जाने वाली होती है।


अब जाकर काव्या को समझ में आया कि....

 इतना भी वह बिजी नहीं रहती है कि एक समय का खाना न बना सके।अब वह अपने बेटे का गिरता हुआ स्वास्थ्य नहीं देख सकती थी विकी स्वस्थ नहीं रह रहा था और उसकी पढ़ाई में भी बहुत परफॉर्मेंस डाउन हो रहा था इसलिए काव्या ने थोड़ा थोड़ा समय घर को देना शुरू किया और अपनी पुरानी दोस्तों से भी थोड़ा थोड़ा बात करना शुरू किया तो उसे बहुत अच्छा लगने लगा।


ऑफिस के काम से के बोझ के तले वह जो अकेली पड़ गई थी तो उसे डिप्रेशन की दवाई खानी पड़ गई थी।अब जब दोबारा वह सब लोगों से मिलने लगी बचे हुए टाइम में घर का कुछ काम कर लेती और बच्चे और सास-ससुर के साथ समय बिताती कभी किसी सहेली से बात कर लेती मिलने चली जाती धीरे-धीरे काव्या अपनी पुरानी जिंदगी में वापस आ रही थी नौकरी के साथ घर का तनाव भी उड़न छू होने लगा था।

 घर में सब उसके बदलाव से आश्चर्यचकित थे।


और खुद काव्या भी अपने आप में अच्छा महसूस कर रही थी। उसका पति भी इन दिनों पहले से काफी खुश और संतुष्ट रहने लगा था।

यह बदलाव काव्या में अचानक नहीं आया था।यह बदलाव उसके मायके से आने के बाद हुआ था। जिसे पूरे घर ने महसूस किया था।


 दरअसल उन्हीं दिनों उसकी छोटी बहन की शादी तय हुई और वह एक सप्ताह के लिए मायके गई तो वहाँ उसने देखा कि उसके छोटे भाई की पत्नी प्रेरणा इतने बड़े पद पर होने के बावजूद घर का भी काम करती थीं और ऑफिस भी समय पर पर जातीं और दोनों जगह बैलेंस रखने की कोशिश करती थीं।

यहां तक कि....


 रसोई में कभी चाय तक नहीं बनाने वाले पिताजी को भी उसने प्यार से मना लिया था कि पिताजी सुबह उठते हैं तो सुबह की चाय बना दिया करेंगे। इस बदलाव से पूरा घर खुश रहता था। और किसी के मन में ना तो हीन भावना आती थी ना घर का काम करने में कोई खुद को हीन समझता था।


इसके पहले काव्या ज़ब कभी मायके आती तो दो एक दिन ही रूकती थी और चुंकि तब वह काम नहीं करती थी इसलिए उसका ध्यान प्रेरणा पर नहीं गया था कि वह जॉब और घर दोनों कैसे मैनेज करती है।

इस बार काव्या जब अपने मायके गई और अपनी भाभी की दिनचर्या और हर काम के लिए तत्परता देखी तो प्रेरणा उसकी प्रेरणा बन गई क्योंकि वह काव्या से भी ज्यादा पढ़ी लिखी थीं।


और.....काव्या  से भी अच्छी नौकरी कर रही थीं फिर भी उसकी विनम्रता और घर संभालने की कार्यकुशलता ने सबका दिल जीत लिया था।


 वैसे यहां पर सारा क्रेडिट प्रेरणा को देना भी सही नहीं है।


दरअसल प्रेरणा की माँ फिर खुद एक नौकरीपेशा असली थी और उसने अपनी मां से भी गृह प्रबंधन और नौकरी के साथ बैलेंस करना सीखा था।


बहन की शादी के महीने बाद एक बार फिर काव्या को मायके जाने का अवसर मिला तो इस बार उसने अपना ईगो साइड रखकर भाभी से पूछा कि वह घर और बाहर इतनी अच्छी से तरह से कैसे मैनेज करती हैं?


तो....


उन्होंने बताया कि वह सब्जियां वगैरह कामवाली से कटवा लिया करती हैं, मसाले पिसवा लेती हैं, इसके साथ ही वह बहुत सारे काम अम्मा बाबूजी करने लगे हैं जो प्रेरणा के विनम्र आग्रह सम्भव हो पाया।


इस तरह अम्मा बाबुजी को अपना काम करते हुए बुरा भी नहीं लगता। प्रेरणा उन्हें सिर्फ अपने कपड़े अपना सामान वगैरह व्यवस्थित रखने का आग्रह करती है ताकि उन्हें ज़्यादा परेशानी ना हो और उनका समय भी अच्छा कट जाए। रसोई के काम में भी कभी अम्मा हाथ बंटाती है तो उन्हें वह सूखा काम करने देती हैं जिससे उनके कहाथ गीले ना हों।


जैसे कि....


 काम करने वाली जब तक काम करती हैं तो अम्मा को बोल देती हैं आप उनको देखते रहिए साथ साथ में कपड़े तह हो जाते हैं। उसमें किसी को बुरा नहीं लगता।टीवी देखते हुए भी बहुत सारा काम एक साथ हो जाता है और इस तरह से कुछ नयापन कुछ पुराने तरीके अपनाकर वह घर को बहुत ही सुचारु रुप से चला रही थीं।


इस बार मायके से आने के बाद काव्या में बहुत सारा सकारात्मक बदलाव था, जिसे देखकर घरवाले बहुत चकित थे वह भी गृह प्रबंधन को बहुत महत्व देने लगी थी और धीरे-धीरे घर को अपनाकर हर काम को प्यार से करती।


कोई सूखी रोटी और सब्जी भी बनाती तो उसमें प्यार झलकता और उसको मन से बनाती थी तो कोई मामूली सब्जी भी बहुत स्वादिष्ट बन जाती क्योंकि पहले काव्या को यह सब  काम बोझ लगता था,


 उसे लगता था जो कि वह नौकरी नहीं करती घर में रहती है तो उसे नौकरानी समझ के उसे नीचे दर्जा का समाज के लोग घर का काम करने कह रहे।


प्रेरणा ने काव्या की मानसिकता बदल दी थी और कुछ परिस्थितियों को देखकर भी काव्या में अब काफी समझदारी आ गई थी।


 सबसे बड़ी बात जो प्रेरणा की प्रेरणा से काव्या ने सीखी थी कि...


कोई भी स्त्री अपने काम को छोटा ना समझे.


काम घर का हो या ऑफिस का दोनों में जिम्मेदारी और कार्य कुशलता की बराबर जरूरत पड़ती है। अगर कोई ग्रहणी घर और बाहर दोनों संभाल रही है तो उसमें यह अतिरिक्त योग्यता है।


और...इस वजह से उसमें घमंड नहीं आना चाहिए बल्कि अपने और महिलाओं के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए कि घर और बाहर दोनों संभालते हुए कैसे सामंजस्य बैठाया जा सकता है।


 परिवार के साथ समय बिताते हुए सबके चेहरों पर मुस्कुराहट देखने का अपना एक अलग ही मजा है।

जो काव्या अब महसूस कर रही थी।


 अब के दिवाली में काव्या के परिवार में सबके चेहरे में एक अलग ही चमक थी, घर की बहू जो लौट आई थी।


 असंख्य दीपों की जगमग ज्योति की तरह काव्या के हृदय में भी अब प्रेम सौहार्द की दीप जल रहे थे।


 अपना घर परिवार अपना कर और अपने काम में भी कुशलता स्थापित कर अपने आप में नई स्फूर्ति का अनुभव कर रही थी।


इस बार की दिवाली ने काव्या के दिल को रोशन कर दिया था।



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