1983
1983
आज से करीब 36 साल पहले की बात है हमारी नई-नई शादी हुई। ससुराल में संयुक्त परिवार था मैंने कुछ दिनों में ही समझ लिया था के घर सारे मेम्बर्स में क्रिकेट के लिए क्या दीवाना पन है। उस वक़्त घरों में इक्का-दुक्का टी.वी. थे, हमारे घर में टीवी था। पूरे मौहल्ले वाले "रामायण," देखने ऐसे त्यौहार की तरह आते थे बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं सब घर का हाल फूल हो जाता था।
यही क्रिकेट का हाल था पूरा-पूरा दिन घर में इतनी भीड़ और हर चौकों-छकों पर ख़ुब शोर- शराबा में नई बहू थी तो घर में चाय-पानी का सारा इंतज़ाम मेरे उपर कभी-कभी मैं घबरा जाती के ये क्या मुसीबत है।
क्रिकेट फैन्स ऐसे के मर मिटने को तैयार इंडिया खेलता तो हर बॉल पर उधम मच जाता, मेरी अपनी सास और बहुत से लोग बड़े अंधविश्वासी के कोई उठ के जा रहा है, बल्लेबाज आऊट हो गया तो जाने वाले को ख़ूब डांट लगती तूने अपशकुन कर दिया।
1983 की बात है। उन दिनों का विश्व कप सुबह 4:30 बजे आता था क्योंकि वहाँ उस वक़्त दिन के 8 बजते थे, क्यों टाइम का फर्क था, मैं इतनी मज़े मैं थी क्योंकि इतनी रात को कोई भी मौहल्ले वाले टीवी देखने नहीं आते थे, उन ही दिनों हमारे यहां नया मेहमान आया था मेरा बेटा। मैंने भी कुछ-कुछ क्रिकेट का शोक़ पाल लिया था अपने कमरे में से परदे के पास बैठकर देखती थी क्योंकि परदे का रिवाज़ था। विश्व कप के बहुत से मैच हमने सुबह के वक़्त देखें हैं।
ऐसा होता था क्रिकेट, फैन्स, राष्ट्र।