ज़ंजीर
ज़ंजीर
ख़ुद की जंजीर खुद को खोलना है
कर्मो का हिसाब खुद को करना है
बहुत गंवा दिया पहले ही वक्त तूने,
अब मन की जंजीर को तोड़ना है
बुढ़ापे तक तू इंतजार मत कर
ख़ुद को तू इतना लाचार मत कर
मोह जंजीर से खुद को मुक्त करना है
खुद की जंजीर खुद को खोलना है
तू बड़ा जरूर बनना पर अहंकारी नही
अहंकार की स्वर्ण जंजीर से बचना है
काम के आगे,अच्छे-अच्छे हुए लाचार है
तुझे हर काम को निष्काम करना है
काम की सबसे शक्तिशाली जंजीर को,
हरिनाम से तुझे टुकड़े-टुकड़े करना है
खुद की जंजीर खुद को खोलना है
आग से ज़्यादा वो सबको जलाता है
दुनिया मे वो चीज क्रोध कहलाता है
तुझे क्रोध की जंजीर सब्र से तोड़ना है
एक मीठा पान,करता हमे बेईमान,
लोभ-जंजीर को संतोष से तोड़ना है
ईर्ष्या एक ऐसी डायन है,
करती दूषित सबका मन है,
ईर्ष्या की जंजीर को प्रेम से जलाना है
ख़ुद की जंजीर ख़ुद को खोलना है।