ज़िन्दगी के खेल
ज़िन्दगी के खेल


जिंदगी खेल खेल रही है
चलो, हम भी उसका हिस्सा बने,
चाहे जैसी भी हो,
हम उसका यादगार किस्सा बने।
ना पीछे मुड़ना है
ना आगे रुकना है,
बस जिंदगी के राहों में गिरना है,
और गिरकर सँभलना है।
आगे संघर्षों ले लड़ना है,
फिर खुद मे ही सँवरना है ।
ना हमको थकना है
ना हमको झुकना है,
यूहीं जीवन के पथ पर
समय के साथ चलना है।
राहें हैं कांटे भरी,
उनपर कष्ट रुपी,
कंकर है पड़ी ।
उनको ठ
ोकर मार कर,
आगे कदम बढ़ाना है।
ना हारने की आह है,
ना जीतने की चाह है,
जिंदगी जिए कैसे?
वैसी कला सिखाना है।
जिंदगी के दो ही पहलू है,
या तो हारना या तो जीतना,
पर,इन दोनो के बीच जो है,
वो कला है हमको सिखना।
हमें जिंदगी कुछ न कुछ देती ही है।
जीतने पर जीत देती है,
और हारने पर सीख देती है।
आओ एक संकल्प ले,
जीवन को सुखद बनाने में।
चाहे, सामने कोई भी मुश्किल आ जाए,
उसको हँसकर हराने में।