यथार्थ
यथार्थ
मैं यथार्थ लिखता हूँ,
शोषण मुक्त समाज चाहता हूँ।
प्रकृति की बेहतरीन रचना पर लिखता हूँ,
खुद को बेहतर के लिए संघर्ष करता हूँ।
गूंगे-बहरे की आवाज लिखता हूँ,
असाध्य को साध्य बनाना चाहता हूँ।
मन की बात लिखता हूँ,
जुल्म की हस्ती मिटाना चाहता हूँ।
अंधविश्वासों के विरुद्ध लिखता हूँ,
इंसान में इंसानियत चाहता हूँ।
कुसंस्कारों पर लिखता हूँ,
धर्म के लबादे के पाखंड से मुक्ति चाहता हूँ।
