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Sneha Bawankar

Abstract Classics

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Sneha Bawankar

Abstract Classics

यहीं वो मंजर था

यहीं वो मंजर था

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यहीं वो मंजर था.....

जब इश्क़ का मौसम छाया था,

मैं ने जिस वक्त इश्क़ की धुन को गाया था।


यहीं वो मंजर था.....

जब प्यार का सावन आया था,

और मेरे दिल ने दिल से मुस्कुराया था।


यहीं वो मंजर था.....

जब मैं ने एक राज़ को दिल में दबाया था,

और खुद में अश्कों को समाया था।


यहीं वो मंजर था.....

जब खुद को मैं ने गवाया था,

क्योंकि गहरें जख्मों को गले से लगाया था।


यहीं वो मंजर था.....

जब मेरा जनम दिन भी आया था,

और हर साल इस दिन खुद को लाचार ही पाया था।


यहीं वो मंजर था.....

जब हर मौसम को खुद से मिलाया था,

मगर आने वाले इस दिन को अकेले जीना सिखाया था।


यहीं वो मंजर था.....

जब सबसे बड़ी गलती को मैं ने गले से सटाया था,

न जाने क्यों फिर मेरे दिल ने खुशी को महरूम बताया था।


यहीं वो मंजर था।

यहीं वो मंजर था।


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