यहां घमंड की कौन-सी बात
यहां घमंड की कौन-सी बात
दिव्य जगत और धरा मनोरम, तुच्छ है मानव जात।
यहां घमंड की कौन-सी बात, यहां घमंड की कौन-सी बात।।
सीमित सांसें हैं, सीमित ये जीवन, सीमित है ये दिन-रात।
यहां घमंड की कौन-सी बात, यहां घमंड की कौन-सी बात।।
हमें जो जीवन मिला है, वह जीवन भी क्षणभंगुर है।
पाप-पूण्य का लेखा लेकर, जाना बहुत ही दूर है ।
कर ले मन सुकर्म , ये मानव जीवन का दस्तूर है।
सोचो क्या करने आए थे? क्या कर रहे हैं आज?
यहां घमंड की कौन-सी बात, यहां घमंड की कौन-सी बात।।
प्रभु ने ही धन दौलत दी है, सुंदर जगत बनाया है।
मानव जैसा कर्म किया है, वैसा फल ही पाया है।
देख रहा है यहां तू जो कुछ, सब ईश्वर की माया है।
ईश्वर ने तन, रूप ये यौवन, दिया हमें सौगात।।
यहां घमंड की कौन-सी बात, यहां घमंड की कौन-सी बात।।
हम आये एक रंगमंच पर, अपना रौल निभाना है।
जैसे ही अभिनय खत्म होगा, हमें यहां से जाना है।
धन-दौलत, रूपया और पैसा, सबकुछ यही रह जाना है।
ध्यान रहे इस घमंड भाव की, कभी ना हो शुरुआत।।
यहां घमंड की कौन-सी बात, यहां घमंड की कौन-सी बात।।
