यह एहसास
यह एहसास
यह एहसास
कि चुनकर बिनकर
समझ सोचकर
शानदार कुनबा इक सजाया
चमन को सजाना जज्बा बनाया
अनुपम जहां बसाना है,
बेकार सब हुआ बकवास,
जी रहे इक अजीब से
एहसास के साथ।।
तस्वीर उकेरा जो गया
बसी बस वह स्वांस
ख्वाब और अंतर्मन में,
जीवन की हर आस हर प्यास
तृप्ति पा खिल उठेंगे
कही यह गई तन तन के
न बनी कोई सी बात
हैरत क्यूं सारी जमात निराश,
जी रहे इक अजीब से
एहसास के साथ।।
सब के सब हम सब संग संग
लगा रहे कुछ ऐसे गोते
भंवर कुछ ऐसी चक्र बनाती
जहाँ अपना सब, सब
धीरे धीरे जाते हैं खोते
किस अबूझ अनोखे
दिराखे पर रखे सारे कयास,
जी रहे इक अजीब से
एहसास के साथ।।