यह दास्तां नहीं रास्ता है
यह दास्तां नहीं रास्ता है
यह दुनिया वाले हैं इनको नहीं मालूम है,
यह जाने वाले हैं इनका अभिमान माशूक है,
नहीं मानता कई मिथक टूटे या तोड़े गये हैं,
इतिहास में कई मिथ्या घटक जोड़े गये हैं।।
यह दास्तां नहीं रास्ता है,
समझना नहीं है तो दास्तां है।
समझना तो होगा यह नग्मा तुम्हें,
आवाज दी है रुकना तो होगा तुम्हें।
अभी अभी तो यह उल्फत बड़ी है,
लिखने की आदत या लत पड़ी।
जाने कहां से आती है यह मिथ्या मंच पर,
लोग भी समझते नहीं अपनी विरहा तंज पर।
शेरों ने कब कहा है कि हम शिकारी हैं,
गरजत बदरा कब बोले कि वह अभिमानी हैं।
काश इस जिंदगी का और सफर होता,
कुछ लोग मिलते और फक्र जवां होता।
काश खुदा ने यह जमीं बनाई न होती,
शायद आज फिर यह लड़ाई न होती।
वह क्यों मेरे पास यूं ही तुम्हें आने नहीं देता,
आखिर क्यों जिंदगी के साथ जीने नहीं देता।
जो लोग जुदा होते हैं इश्क में जान से,
हम उन्हें कायर समझ लेते हैं इत्फाक से।
किसी आरजू से मिलोगे तो ख्याल आयेगा,
मंजिलें क्या होती हैं यह तो जुनून बतायेगा।
यह जिंदगी कभी रुसवा होगी,
हम क्यों हों जिंदगी रुसवा होगी।
गीत या गजल के सार को बहुत सोचना होता है,
कई बार शब्दों के साथ खुद को तोड़ना होता है।
गर जीवन पथ में साथ तेरा न होगा,
फिर कोई साथी न कहने वाला होगा।
माशूक जवानी हंसी चेहरा,
कौन देखे कौन सा रुप तेरा।
आ वतन के लिये जीयें कुछ पल,
प्यार में उल्फत से बड़ी है देश की जंग।