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paramjit kaur

Drama

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paramjit kaur

Drama

ये शहर है...मेरा!

ये शहर है...मेरा!

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ये शहर है… मेरा !

कल तक जहाँ रंगीनियाँ थीं,

आज ख़ामोशी है, बेचैनी है।


लगता है,दस्तक दी है, फिर किसी तूफ़ान ने,

हर तरफ़ भाग दौड़ है , जाँच हो रही है ,

आज धर्म जाति से परे सब साथ हैं !


इस तूफ़ान से लड़ने के लिए सब तैयार !

वैसे, शक्ति तो साथ में ही है।

तूफ़ान तो हर बार अलग-अलग वेश में आता है।


मगर, क्या हर बार हमें साथ मिल पाता है .....?

ये तूफ़ान भी थम जाएगा,


ये चमन फिर से मुसकाएगा

मगर, क्या ये 'सबक' समझ आएगा।


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