ये क्या ज़िंदगी है
ये क्या ज़िंदगी है
हर तरफ़ दरिंदगी ही दरिन्दिगी है !!
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं एक दर्द है
जो घूमता मेँ इर्द गिर्द है !
मै लाख़ छुड़ाना चाहूँ इसे
और जकड़ती जा रही है मुझे !
आज क्या ये ज़िन्दगी है !!!
ज़िन्दगी तू ही बता तुझे कैसे जिऊँ
तड़पता रहूँ या ख़ुदा से मिलूं !
बड़ा ही ज़ालिम है ये जग
कर दिया है मेरे पाँव डग मग,
मै इससे भागना भी चाहूँ
और पकड़ती जा रही है मुझे
आज क्या ये ज़िंदगी है !
मैं तो अब भी चाहती हूं अपनाना
मेरा दिल चाहता है उसे मनाना
तरस जाती है आँखें, आँखों से मिलने के लिए
नहीं सोचते है फिर भी मेरे ज़िंदगी के लिए
आज क्या ये ज़िंदगी है !