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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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ये क्या देश में हो रहा है

ये क्या देश में हो रहा है

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धरती जल रही है

आकाश रो रहा है

ये क्या देश मे हो रहा है

माँ का कलेजा छलनी हो रहा है


देश की राजधानी

भारत की जिंदगानी

दिल्ली के हिस्से

शाहीनबाग में दंगा हो रहा है

एक भाई दूसरे भाई के 

खून का प्यासा हो रहा है

ये क्या देश मे हो रहा है


ना धर्म वो बुरा

ना धर्म ये बुरा

फ़िर क्या हुआ है,ऐसा

एक caa के चक्कर मे

ये देश घनचक्कर हो रहा है


बात रखने के लिये लोकतंत्र है

हमें आपस मे लड़ाने के लिये

पड़ोसी रच रहा ये षडयंत्र है

फ़िर भी हम नही समझ रहे है

बरसों का भाईचारा,

एकपल में खाक हो रहा है

ये क्या देश मे हो रहा है


न तू हिन्दू है,न तू मुस्लिम है

सिर्फ़ तू मां भारती का पुत्र है

ये बोलते ही,ये सोचते ही

माँ का सीना 56 इंच हो रहा है


ये धरती अपनी भारत माँ है

हिन्दू,मुस्लिम इसकी दो आंखे है

सिख्ख,ईसाई इसके दो कान है

जैन,बौद्ध इसके नाक और मुँह है

इन सबसे मिलकर ही बनता है

ये देश मेरा हिंदुस्तान है

फ़िर क्यों ये झगड़ा हो रहा है

एक भाई,दूसरे भाई का शत्रु हो रहा है

ये क्या देश मे हो रहा है


लड़ो तो देश के गद्दारों से

लड़ो तो देश के व्याभिचारो से

यूँ लड़ने से,

यूँ झगड़ने से,

ये देश खण्ड खण्ड हो रहा है


धरती जल रही है

आकाश रो रहा है

ये क्या देश मे हो रहा है

माँ का कलेजा छलनी हो रहा है



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