ये कैसी होली
ये कैसी होली
बहुत लोग घर में जमा हो गए हैं
चेहरे से लगता खफा हो गए हैं
सभी बेरंग क्यों बनकर है आए
सभी के चेहरे क्यों है मुरझाए
धीरे-धीरे क्यों कर रहे हैं बातें
क्यों कह रहे मेरी काली हो गई रातें
अरे कोई निकालो इन्हें मेरे घर से
या बन के पंछी में ही उड़ जाऊं फुर से
अरे होली के रंगों में मुझको है खिलना
साजन आने वाले हैं उनसे है मिलना
यह रंगों का त्योहार मुझे है मनाना
मेरी बिंदिया चूड़ी को हाथ लगाना
अरे कोई आया किसी को उठाए
जाने क्यों बेटा सफेद कपड़ा उड़ाए
लगता है शायद कोई सो रहा है
मेरे जैसे सपनों में वो खो रहा है
अरे होली है मेरा मन खिल रहा है
क्यों हर कोई आ कर मुझे मिल रहा है
मैं समझ ना पाई यह क्या हो रहा है
जिसे देखो वही क्यों रो रहा है
मैं सपनों में खोई आगे बढ़ी जो
अरे सफेद चादर थोड़ी उड़ी तो
ऐसा होश आया कि मैं गिर गई
बस रंगों की होली यूँ बिखर गई।
