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संदीप सिंधवाल

Abstract

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संदीप सिंधवाल

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ये जो आंखें हैं

ये जो आंखें हैं

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ये जो आंखे हैं

ये मन में छुपे सारे भेद जानती हैं

उल्लास, दुख और खेद जानती हैं।


ये जो आंखे हैं

कवियों और आशिकों की हदे हैं

कल्पना और विचारों के मत्थे हैं।


ये जो आंखे हैं

एक बोली है कभी भी पुकारती है

मानकों से रिश्तों को संवरती हैं।


ये जो आंखें हैं

दूर कर जाती हैं गिले शिकवे भी

झुकी तो लगा देती बैरी गले भी।


ये जो आंखे हैं

ये सुनती नहीं, पढ़ के समझती हैं

दिल दिमाग मन तक पहुंचती हैं।


ये जो आंखें हैं

बुरे भले की पहचान करवाती हैं

ये आंखें वास्तविकता दिखाती हैं।


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