ये जिंदगी
ये जिंदगी
अंगारे सी ये जिंदगी
पिघला रही है,ये सांसें
आग में घी है ये जिंदगी
टूटते है फिर जुड़ते हैं।
टूटे हुए लफ़्ज़ों की
ख़नकार है,ये जिंदगी
फूल कम, शूल ज्यादा मिले
अपने कम, पराये ज्यादा मिले।
दरिया में होकर भी
प्यासी है, ये जिंदगी
सज़दा रोज करता हूं
इबादत रोज करता हूं।
फ़िर भी अपने पिया से
बहुत दूर है, ये जिंदगी
सामने होकर भी
अनछुए राज है, ये जिंदगी।
अधरों पर होकर भी
अधूरी मुस्कान है,ये जिंदगी
चेहरे पर चेहरे ढके हुए है
पर्दे पर पर्दे पड़े हुए है।
आईना पास होकर भी,
खुद को ही भूल रही है,
ये जिंदगी।
