ये हवाओं
ये हवाओं
महबूब को देना बसंती पैगाम
दिल रंगों से सराबोर हुआ उनके नाम
सुमन कुसुम खिल चुके उपवन में
मोर नाचे जमके अब इस कानन में
तेज होती धरा की उष्णता
खिल रही फूलों संग लता
पीले सरसों बिखर रहे खेत में
सन्त आसन कर रहे रेत में
जंगल में धूम मची है
बसंत ने मेंहदी रची है
मन हो रहा है पागल बावरा
दिल पुकारता आ जाओ जरा
तुम्हें बसंत की चुनरी ओढ़ा दूँ
रस फूलों का ताजा चखा दूँ
यौवन से पागल हुआ ज़हन
बसंत में तुम्हें याद कर रहा मन
नाम रट रहा
दिल उनका सुबह शाम
ये हवाओं
महबूब को देना बसंती पैगाम।।

