बसन्ती घास और फूल
बसन्ती घास और फूल
तुम जीते हो
फूलो सा मधुर बिश्वास लिये
मै रोता हूँ
दूब की एक हरी घास लिये।
तुम नित नये रंग में खिलते हो
प्रतिदिन नए देवताओं से मिलते हो
मै अटल स्थिर
जीता हूँ ओश की एक प्रकाश लिए
तुम जीते हो फूलो सा मधुर विश्वास लिये।
मुझ पर झोंके का असर नहीं
तेरे जैसा मेरे पास रंगीन पर नहीं
प्रखर हूँं बहती सर्द हवाओं में
सोता हू सीने में फ़ौलाद लिये
तुम जीते हो फूलो सा मधुर विश्वास लिये।
तुम सदा मदमस्त चलने वाले
मंदिरों की गोद मे पलने वाले
जीते हो उपवन की शान लिये
तुम जीते हो फूलों सा मधुर विश्वास लिये।
तुम रंग से बारात तक जाते हो
तुम सब का इश्क फरमाते हो
मैं हँस के ढोता रहता खड़ माष लिये
तुम जीते हो फूलो सा मधुर विश्वास लिये।
तुम देवताओं सा आभा झलकाते हो
मैं बनता सुरभि का आहार तभी सब खाते हो
तुम वीणा पर भी पूजे जाते हो
मैं खड़ा कहीं कहीं नाश कहीं मधुमास लिये
तुम जीते हो फूलो सा मधुर विश्वास लिये
मैं अटल स्थिर
जीता हूँ धरती की एक श्वास लिए
तुम जीते हो फूलों सा मधुर विश्वास लिये।
