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Umakant Yadav

Others

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Umakant Yadav

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झूमते पेड़ो से

झूमते पेड़ो से

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झूमते पेड़ो से निकल रही हवायें

बसन्ती फूलों में दिख रही कलायें


छू लो गगन को छू लो पर्वत की ऊँचाई

कहता दिल छू छू के दे दो इनको दुहाई

झूम के हम दोनों आवाज लगाएं

झूमते पेड़ो से.....


इधर उधर में यहीं दिखा है प्यार मेरा

तेरे मधुर गीतों से सजा है प्यार मेरा

कह रही यहाँ की सारी सदायें

झूमते पेड़ो से.....


पर्वत की जो ऊंची ऊंची माला है

उसी ने दिल खिंच के दिल में डाला है

धड़कनों को धड़का रही फिजायें

झूमते पेड़ों से....


कह रही नदियाँ न बैठो मेरे किनारों पे

पास आके मुझे शामिल करो उपहारों में

उछलती मीन बार बार ललचाये

झूमते पेड़ों से....…


महुआ की डोरी भी रस टपकाये

मोर झूम झूम के मयूरी नाच दिखाए

झुमते पेड़ों से निकल रही हवायें

बसन्ती फूलों में दिख रही कलायें।।



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