नवबसन्त
नवबसन्त
पेड़ों में बौर आने लगे
पंक्षी कलरव फैलाने लगे।
जंगल में पशु करते मंगल
चिड़िया चहचहाये लेके बल
फूल खिल रहे पलाश के
नव गीत बजने लगे फागुन माष के
खेतों में सरसों के फूल पिले रंग में
तेज हुआ मार्तण्ड फिर से जंग में
नई उदित होती शाखाएँ
नई हरियाली बागों में छाये
माँ सरस्वती की होती बंदना
सारा मौषम सुहावना बना
फुहार से रस बरसाने लगे
पेड़ से बौर आने लगे।
