बसन्त की ये चाहत
बसन्त की ये चाहत
बसन्त की ये चाहत
बिन तेरे
मिलती नहीं राहत
ये रातों की तन्हाइयां
उस पर खींचती है
तेरी परछाइयां।
ये काले काले बादल
तेरी जुल्फों में
रंग तो नहीं भर दिये
ये बातों की बिसातें
तेरे रुखसार पे
कोई जादू सा
तो नहीं कर दिये।
बुलाते है तुम्हें बार बार
निहारतें है तुम्हें बार बार
तुम बनके धड़कन
दिल के हर साये में
धड़कती हो।
तुम प्यार बनके
तुम ख़्वाब बनके
जब भी मिले
दिल में बार बार
कहती हो
बसन्त में
बहारों ने फूल बरसाया
और हम भी तुम भी
खूब खिले बसन्त में
रंगीन फूल खिले
आ जाओ
मेरे दिल के करीब
बनके मेरे रकीब
बदल दो अपने अरमां
बदल दो अपनी आदत
न लो बार बार
मेरे दिल की शहादत
ये दिल ये चाहत
दिल आज भी पुकारता है
समंदर की तरह
तू मुझे अपनी आगोश में ले ले
मिटा के सारी दूरियाँ
फिर एक बार जोश में ले ले
कर दे एक बार हाँ तुम
फिर से इनायत
न रहें कोई शिकायत
बसन्त की ये चाहत।।

