ये अपना अन्तर मन
ये अपना अन्तर मन
कोई करता जान निछावर
कोई करता विद्रोह देश पे
कोई करता तन मन अर्पण
है ये अपना अपना अंतर्मन
है हर देशवासी हिंदुस्तानी
पर हर दिल में हिंदुस्तान धड़कता है
ये प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं हिन्दुस्तानी
मर मिटे भारत मां के खातिर
सच्चे वो सपूत थे
आज भी डटे हैं सीमाओं पे
करते निगेहबानी हर जर्रे की
फिर क्यों धूमिल करते
देश के अरमानों को
जूझ रहा है देश महामारी के अंगारों पे
फिर क्यों करते उलंघन देश के कानूनों का
क्यों हर नियम की करते हम बेपरवाही
कहते रहते हम हमेशा सामाज की सेवा करने को रहते तत्पर
फिर हाय क्या तुमने मानवता का दामन छोड़ दिया
क्यों दिल्ली को रण का मैदान बना दिया
अरे लड़ने का ही शौक तुम्हें है तो
जाकर सीमाओं पर डट जाओ
चलो तुम उस सैनिक के कन्धे से कन्धा मिलाकर कर
जो करता निगेहबानी देश की!
