यादों के आँगन में
यादों के आँगन में
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
अब मेरी यादों के आँगन में हजारों आँधियाँ बहतीं,
मिटाकर मन की दुनिया को अधूरी दास्ताँ कहतीं,
भला किससे शिकायत हो-कहाँ जाकर करें शिकवा,
नसीबा न बिगड़ता तो बात कुछ और ही रहती,
मेरी यादों के आँगन में हजारों आँधियाँ बहतीं।
न सोचा था क्या पाएँगे, मगर दिन ये दिन भी आएँगे,
इल्म होता अगर हमको जिंदगी क्यों खफा रहती,
रात-दिन अश्क बनकर के आँखों से यूँ नहीं बहती,
मेरी यादों के आँगन में हजारों आँधियाँ बहतीं।
सफर अपना भी यूँ होता के जीने को जुनून होता,
अगर माजी की परछाई अंधेरा बन के न रहतीं,
लकीरें साथ देतीं तो खुशी न अलविदा कहती,
सँवर जाती जिंदगी और याद भी खुशनुमा रहती,
मेरी यादों के आँगन में हजारों आँधियाँ बहतीं।