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Nishant dhingra

Classics

3  

Nishant dhingra

Classics

यादें

यादें

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बचपन के वो कुछ लम्हे

याद अक्सर आ जाते हैं,

जब उन गलियों से गुजरते हैं,

जहां बचपन बिताया होता है।


पहला प्यार, पहला क्रश

कहां भुलाए जाते हैं,

जब कभी वो फिर से सामने आए

दिल फिर जोरों से धड़कते हैं।


बचपन के वो दोस्त अब,

जो कभी भी बुलाने पर खेलने आ जाते

और फिर बाद में मार भी खाते,

कहां दोबारा मिलते हैं।


जिंदगी के आखिरी पल में भी

इस बचपन को याद हम करते हैं,

कि काश ये फिर से वापिस आ जाए,

बस यही दुआ अब करते हैं।


बचपन के खत्म बस होते ही

स्कूल का दौर फिर आता है,

जिसमें बहुत से दोस्त और उम्र भर की

यादें अपने आप बन जाती हैं।


वो दोस्तों के लिए लड़ना,

कागज़ की गेंद बनाकर क्लास में खेलना

सबकुछ फिर से जीने का मन करता है,


और क्रश का थोड़ा सा

बात कर लेना

दिल को ही छू लेता था,

दिन अच्छा गुजरता था।


वो पेपर से एक दिन

पहले भी स्कूल जाना,

पढ़ने की बजाय खेलकर आना

बहुत याद अब आता है।


वो सिर नीचे करके बैठने पर भी

दोस्तो का पूछना "क्या हुआ !"

कहां भुलाया जाता है,


अब तो बीमार होने पर भी

कहां ही कोई पूछता है,

दिल उन दोस्तों को

याद बस करता है।


वो स्कूल के आखिरी दिन पर 

सबका दूर होना,

एक बुरे सपने जैसा लगता है,

दिल इस सपने से जागने का करता है,

बस तुम्हें ही याद किया करता है।


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