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Sankit Sharma

Abstract

5.0  

Sankit Sharma

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व्यथा ही कविता

व्यथा ही कविता

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नहीं मैं नहीं लिखता कविता

मै लिखता हूं अनकही सी व्यथा


मेरी कविताओं में शब्द नहीं होते

मेरी कविताओं में वो होते है

जो निशब्द होते है


इनमे वो आवाजें सुनाई देती है

जिन्हे कोई भी नहीं सुनता


भावनाओं का ये वो मार्ग है

जिसे कोई नहीं चुनता


नहीं मैं नहीं लिखता कविता

मैं लिखता हूं अनकही व्यथा


कभी इनमे तुम पाओगे

पंछियों की गड़गड़ाहट


तो कभी महसूस करोगे

शाखों से गिरते पत्तो की हड़बड़ाहट


कभी भवरों की सन्नाहटो में पाओगे

वो शिकायत को वह सबसे करते है


घूम आते है पूरी बगिया पर

अधिकतम फूल आप रसहिन निकलते है


उनकी बातें

जिन्हे नहीं चाहिए किसी का देह

जो चाहते है बस मानव का स्नेह


कभी उन जीवो की जो विलुप्त हो रहे है

और मानव भी उनसे धीरे - धीरे विमुक्त हो रहे है


मैं उनकी व्यथाएं लिखता हूं

जिनकी कोई नहीं सुनता


इन व्यथाओ को शब्दों की माला

पिरोह कर देता हूं इन्हे शलीका


मचलती ये व्यथाएं सभी

बन जाती है फिर कविता


और जिस तरह व्यथाएं नहीं मरती

उसी तरह कविताएं भी नहीं मरती


जीवन की सतह के दूसरे छोर से

झांकती है ये इस छोर पर


निहारती है उन व्याथाओ को

जिन्होंने बनाया इन्हे कविता


व्यथा ही होती है कविता

कविता ही होती है व्यथा


इसलिए मैं नहीं लिखता कविता

मैं लिखता हूं अनकही व्यथा।


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