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Sankit Sharma

Abstract

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Sankit Sharma

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जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन

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सिमटती सी इस दुनिया की

उलझी पड़ी कहानी है

हवा में जहर घुला पड़ा है

पीते सब गंदा पानी है


जलवायु परिवर्तन की गतिविधि

मानुष की ही माया है

तापवृद्धि ने देखो कैसे

हिमानी को पिघलाया है


जल प्लवन का एक खतरा

सबके ऊपर मंडराया है

अल्पमती मानुष ने फिर भी

उघोग ही बढ़ाया है


समुद्र के निर की हलचल

उठती है उफान तक

समय के पहिए संग ये

पहुंचेगी हर एक मकान तक


मौसम के बदलाव ने

कृषि को भी तो घेरा है

उत्पादकता घट रही अनाज में

खो रहे विहंग बसेरा है


पेड़ पोधो का अस्तित्व

छिन्न भिन्न हो रहा है

मृदा अपरदन के कारण

सब मूल्य निम्न हो रहा है


इसी भयानक स्थिति से

मानव प्रवृजन में वृद्धि होगी

कैसे भरेंगे अपना पेट वो

कैसे उनकी सुद्घि होगी


आधुनिकता का आखिर

कैसा ये संताप है

धूप में ज्यादा गर्मी है

वायु अधिक ताप हैं


उच्छृंखल विष ने जकड़ा है

धरती के हर एक प्राणी को

ऐसी है दशा जलवायु की आज

की हर एक हो हैरानी हो


प्रकृति को विवश करने का

मानव का ही काम है

दुखियारे इस कुदरत की

अब विप्लव की ही मांग है


अभी समय शेष है

सावधानी हमें बरतनी होगी

सब तत्वों के शिखर पर हमको

रखनी अपनी प्रकृति होगी।


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