वतन को जान हम जानें (ग़ज़ल)
वतन को जान हम जानें (ग़ज़ल)


वतन को जान हम जानें, हमारी जाँ वतन में हो
जुड़ा है जन्म से नाता, जनम भर मन नमन में हो।
कुटिल सैय्याद जब भी बनें, विधाता भव्य भारत के
बदल दे तख्त ज़ुल्मों का, वो जज़्बा जोश जन में हो।
कर्म ऐसे न हों अपने, शर्म से नैन झुक जाएँ।
हया के अश्क हो बाकी, दया का भाव मन में हो।
अगर फूलों को रौंदेंगे, बनेगा बाग ही बंजर
सदय जो हाथ सहलाएँ, सदा खुशबू चमन में हो।
बुनें ऐसे सरस नगमें, गुने दिल से जिन्हें दुनिया
सुनाए कुछ गज़ल ऐसी, कि चर्चा अंजुमन में हो।
सजग साहित्य सेवी हो, सबल हो देश की भाषा
लुभाए विश्व को हिन्दी, वो ताक़त अब सृजन में हो।
न लाँघे शत्रु सरहद को, भले ही शीश कट जाएँ
मिले जब तन ये माटी में, तिरंगे के कफ़न में हो।