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Padma Motwani

Abstract

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Padma Motwani

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वसंत ऋतु

वसंत ऋतु

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  "वसंत ऋतु"

फूल खिले हैं बाग़ो में

पक्षी चहके शाखों पे

गुनगुना रहे हैं सब

आई ऋतु वसंत की।

चलती है मद मस्त बयार

गुंचा गुंचा करें है प्यार

हर कली का हो रहा निखार

आई ऋतु वसंत की।

गोरी करै सोलह श्रृंगार

हर पल खड़ी रहै है द्वार

मन ही मन मुस्काती कहती

आई ऋतु वसंत की।

मीत मिलन की आस है इसमें

पुलकित हों हम दर्शन पाकर

पल पल चाहत यही है रहती

आई ऋतु वसंत की।


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