वर्षा ऋतु मदमाती
वर्षा ऋतु मदमाती
वर्षा ऋतु मदमाती, नटखट, चंचल, इठलाती।
गरमी के माह में शीतलता हम सबको पहुँचाती।।
छाए हुए बादलों की गड़गड़ाहट लगती है बहुत प्यारी।
वर्षा ऋतु में धरती माता हो जाती है बिलकुल न्यारी।।
प्रेम रूपी अमृत वर्षा से भर जाती हैं सभी क्यारी।
हँसते-मुस्कुराते हुए थिरकने लगती है सृष्टि सारी।।
टप-टप करती अनेक बूँदें अद्भुत संगीत सुनाती।
उन्हीं बूँदों के संग मिलकर प्रकृति भी गीत गाती।।
चम-चम करती बिजली भी अचानक चमक जाती।
गगन की गरिमा धरती वासियों को खूब लुभाती।।
बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सब आनंदित होते।
कईं बार तो रात्रि में भी सोते हुए सब जग लेते।।
वर्षा ऋतु के आगमन पर सब खुश हो जाते।
बिन तैयारी के ही आँधी-बरखा से मिलने जाते।।
ढोल-नगाड़ों के साथ आए बादल बिजली भी संग हैं लाए।
इस पावन पर्व पर प्रकृति की सुगंध चारों ओर नज़र आए।।
नदियाँ, झरने, समुद्र आदि भी हिलोरें लेते हुए मुसकुराएं।
गरमी के मौसम में हम सभी को पूरी तरह राहत दिलाएँ।।
वर्षा ऋतु मदमाती भला कैसे आपका गुणगान करूँ।
मैं अपनी खाली झोली केवल अमृत वर्षा से ही भरूँ।।