वरना कल कलमा पढ़ना पड़ेगा
वरना कल कलमा पढ़ना पड़ेगा
अब समय आ गया है एकजुट होने का
वरना अब पछताने का मौका नहीं मिलेगा
जाति पांति भूलकर हिन्दू बन जाओ सब
वरना कल तुम्हें भी "कलमा" पढ़ना पड़ेगा ।।
उनसे न जाति पूछी न उनकी भाषा जानी
न प्रांत की सरहद देखी न कोई बात मानी
जिसने भी होशियारी दिखाई, पैंट खोल दिया
गंगा जमनी तहजीब की खत्म हो गई कहानी
"भाई" के हाथों तू कब तक "चारा" बनेगा
धर्मनिरपेक्षता की चटनी कब तक चाटेगा
अब समय आ गया है एकजुट होने का
वरना कल तुम्हें भी "कलमा" पढ़ना पड़ेगा ।।
जातियों में बांटने वाले खानदानियों को जान
"अमन की आशा" वालों की भी कर ले पहचान
"चिलम" भरने वाले "खैराती" बैठे हैं मीडिया में
काले कोट वाले "गद्दारों" का जूतों से हो सम्मान
"पाक प्रेमियों" को "पाक" भेजना पड़ेगा
जेहादियों को जहन्नुम में पहुंचाना पड़ेगा
अब समय आ गया है एकजुट होने का
वरना कल तुम्हें भी कलमा पढ़ना पड़ेगा ।।
श्री हरि
25.4.25
