वृक्ष और ज़िंदगी
वृक्ष और ज़िंदगी
एक विशाल पर्ण ,
हरियाली की छाँव में,
अपने कोपलों को पल्लवित करता,
एक एक पत्र को, पुत्र की भाँति सींचता!
रंग बदले ,मौसम परिवर्तन,
पतझड़ का हुआ आगमन,
फिर एक एक कर पत्तों का शाख से पृथकाव,
भीमकाय वृक्ष अपने सींचे पत्रों को मुरझाता देख,
बस मन ही मन दर्द से कराहता!
पुष्प सूखे, पत्र सूखे,
कोंपल से बन गए ठूँठ,
हरियल डाली से सूखे बाँस तक,
नजदीक आता दिख रहा था सफर,
फलों से कभी झुकते डालों पर,
अब सूखे काठ देखकर,
वृक्ष मौसम की मार से,
खुद का सीना छलनी होता देखता !
फिर वसंत की फुहार,
जड़ के समीप से अंकुरित होता एक नव पादप,
ला देता है विशालकाय वृक्ष के शीर्ष में नवसंचार,
और फिर वसंत की उजमयी वेला में वृक्ष की मादकता!
यही यात्रा कथा है, जीवन के भवसागर में भी उतार-चढ़ाव की!यह