वृद्ध माँ कहती बेटे से
वृद्ध माँ कहती बेटे से
अपने सामान की पेटी बांध मां बेटे को बतलाने लगी
वृद्ध आश्रम की तैयारी कर मां बेटे को समझाने लगी
आज बेटा तू सुन अपनी मां के उपदेश को
ध्यान से सुनियो बेटा मां के अंतिम संदेश को
तेरे लिए हर पीड़ा सही ,नौ महीने पेट में पाला था
सबसे ज्यादा खुश मैं थी जब तू आने वाला था
तेरे जन्म का मुझे बेसब्री से इंतजार था
दुनिया को भूल गई मैं बस करना तेरा दीदार था
जब बीमारी से तू लाचार होता , ठंड से सिसकता था
तुझे देख परेशानी में दिल मेरा तड़पता था
चोट तुझे लगती और तुझसे पहले दर्द मुझे होता था
दुख होता था मुझे सबसे ज्यादा जब तू रोता था
मेरी उंगली पकड़कर ही चलना तूने सीखा था
मेरा हाथ पकड़कर ही पहला अक्षर तूने लिखा था
ये बता तू किस बात पर इतना इतराता है
मेरी ही कोख से जाय हुआ , खुदको मुझसे बड़ा बताता है
जब तुझे भूख लगती , हाथों से खाना खिलाती थी
जब डांटते तेरे पिता , आँचल में अपने छिपाती थी
जब बैचैन तू होता , तुझे लोरी गाकर सुलाया करती
जब तू होता खुश तब मैं मुस्काया करती
जब तू परेशान होता , रातो रात जगती मैं
खुद गर्मी सहकर तुझे हवा करती मैं
तेरे लिए अपनी हर इच्छा त्यागी मैंने
तू हर पल खुश रहे , खुदा से यही दुआ मांगी मैंने
कोई गिनती नही है कि तेरे खातिर कितने सुख खोए मैंने
तेरे झूठे बर्तन और गंदे कपड़े भी धोए मैंने
मुझसे ऊची आवाज़ में बात करता , इतना बड़ा तू कब हो गया
तेरे अंदर का ज़मीर आज क्यो और कहॉ पर सो गया
वैसे एक माँ कभी अपने एहसान गिनाती नही है
कितने किए है उपकार माँ कभी बताती नही है
पर तूने मुझे अपने हसन गिनवाने को मजबूर किया
अपने शब्दों के बाणों से तूने मुझे चकनाचूर किया
जा रही हु आज तेरा ये मकान छोड़ कर
जा रही हु तुझसे अपने सारे रिश्ते तोड़कर
पर जिस घर मे माँ नही , सूनापन वहां छाया रहता है
जिस घर मे माँ का आदर नही, वहां दुखो का साया रहता है
जा रही हु मैं , रह तू इस इटो से बने हुए मकान में
मैं तो चली घूमने खुले आसमान में
यही दुआ देकर जाती हूं कि आफत तुझपर आए न
मैं चाहे रहू कितनी दुखी , खुशियां तेरे जीवन से जाए न