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Mujeeb Khan

Tragedy

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Mujeeb Khan

Tragedy

वक़्त ने दिया है वक़्त

वक़्त ने दिया है वक़्त

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वक़्त ने दिया है वक़्त आज, ए इंसा बात तू ये

समझ ले,

छोड़ इस भागदौड़ को आज जरा तू संभल ले


बैठ के गुजरी ज़िन्दगी की किताब आज ज़रा

तू देख ले

क्या खोया क्या पाया ये हिसाब ज़रा तू देख ले


परिंदो की परवाज़ को पिंजरे में कैद करने वाले ,

हश्र अपना आज तू देख ले

कैद है तू पिंजरे में आज, वक़्त अपना तू ये देख ले


नहीं सम्भला तू ए इंसा अभी भी तो ये तू देख ले

ज़िन्दगी मौत का फासला है बहुत कम बात तू ये

समझ ले


जो आज भी न समझा ज़िन्दगी के इस पैगाम को,

तो ये समझ ले

महलों में रहने वाले इंसा दो गज ज़मीन अपने लिए

तू ढूंढ ले


रख सब्र, ठहर जा, ज़िन्दगी ज़रा जी ले,

अपनी परवाज़ो को कुछ वक़्त को रोक ले

रहेगी ज़िन्दगी तो कर लेगा मंज़िलें और भी 

हासिल, ज़रा बात तू ये समझ ले।



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