वो
वो
वो चुनर ओढ़ती है,
अपने मर्जी से नहीं,
उसे ओढ़ाया जाता है,
वो अपने चेहरे ढकती है,
अपने मर्जी से नहीं,
उसे ढकना सिखाया जाता है,
समाज के पड़े धब्बों को,
छिपाना है ऐसा
उसे बताया जाता है,
वो स्त्री है जिसे हर चंद
मिनटों में तौर तरीकों के साथ मर्यादा
का पाठ रटवाया जाता है,
जो गर तिरस्कृत कर दिया उसने
उसे बेवा और वैश्य बनाया जाता है,
स्त्री को सिर्फ और सिर्फ बनाया जाता है।