STORYMIRROR

प्रवीण कुमार शर्मा

Romance

4  

प्रवीण कुमार शर्मा

Romance

वो सतरंगी पल

वो सतरंगी पल

1 min
415

जब मिलेंगे हम तुम

नदी केे उस पार

जवां दिलों में होगी खुशी अपार।

नदी केे किनारे बैैैठे

निहारते रहेंगे एक दूसरे

की परछांई को।

जो परिलछित होगी

उस नदी के बहते हुए कांच जैसे

पारदर्शी जल में। 

उस जल में सिर्फ मेरा और तेरा ही चेहरा

परिलछित नहीं होगा

चाँद भी होगा हमारे साथ में।

जो नदी के उस जल में

रात्रि के आगोश में

मिलने आएगा अपनी परिलछित होती

प्रेमिका:चांदनी से।

एक तरफ तू सरमा रही होगी

तो दूसरी तरफ चांदनी भी सिमट रही होगी

अपने प्रियतम को निहारकर ।

मैं तो अकेले ही मिलने आऊंगा तुमसे

डरपोक जो ठहरा

चाँद तो तारों की सारी बारात लेकर आएगा

उस रात नदी किनारे।

रात्रि के तीन  पहर निकल जाएंगे

चांदनी और चांद के मधुर मिलन में

आखिरी पहर भोर का होगा

जो चांदनी को विदा करेगा चाँद के साथ

भीगी पलकों से।

हम देखते रह जाएंगे

मूकदर्शक बन कर

उन दोनों का एकाकार।

हम दोनों का भी मन

उस दिव्य एकाकार के दीदार से हो पुलकित

खो जाएगा उस सतरंगी पल में ।

तब,

मेरी और तुम्हारी आत्मा उस रात्रि के पहर में

परमात्मा से मिलने निकल

पड़ेगी चाँद और चांदनी की तरह

अनंत यात्रा पर।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance